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एक आदमी के सिर में भयंकर दर्द रहता था। वह वैद्यों के पास गया। डाक्टरों के पास गया। काफी चिकित्सा करायी; पर सब व्यर्थ । वह जीवन से घबरा गया। उसका जीना दूभर हो गया। एक बार किसी व्यक्ति के साथ उसकी लड़ाई हुई। प्रतिपक्षी ने गुस्से में आकर तीर फेंका। जैसे ही वह तीर पैर में चुभा, सिर का दर्द तत्काल मिट गया। वह आश्चर्य में पड़ गया। उसने सोचा -- इतने उपचार भी मेरे सिर-दर्द को नहीं मिटा पाये और आज एक तीर लगते ही वह मिट गया, मानो कि वह कभी हुआ ही न हो। वह रहस्य को समझ नहीं सका। वह वैद्यों के पास गया। अपनी रामकहानी सुनायी। सभी अचंभे में पड़े रहे। वैसा ही प्रयोग प्रारंभ किया। दूसरे आदमी के सिर में दर्द आया उसे तीर चुभोया और वह ठीक हो गया। तीसरे, चौथे, पाँचवें व्यक्ति पर भी प्रयोग किया और सिर दर्द ग़ायब हो गया। यह तथ्य स्थापित हो गया कि सिर में दर्द होने पर पैर के अमुक स्थान में तीर चुभाने से दर्द मिट जाता है। ‘एक्यूपंक्चर' की चिकित्सा पद्धति की यही कहानी है।
हमारा शरीर विद्युत् का शरीर है। इसमें बिजली की प्रधानता है। हम माने, न मानें, यह बहुत ही स्पष्ट है कि बिजली के असन्तुलन के कारण हमारे शरीर में अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं। तैजस शरीर के अस्त-व्यस्त होने पर शरीर में विकृतियाँ उत्पन्न होती हैं। यदि हम तैजस शरीर की समुचित व्यवस्था कर लें, बिजली का उचित संतुलन स्थापित कर लें और समीकरण कर लें तो अनेक चीजों को हम स्वयं समाप्त कर सकते हैं । अनेक स्थितियाँ स्वयं समाहित हो सकती हैं।
यह सारी चर्चा मैं इसलिए कर रहा हूँ कि रहस्यों की खोज किये बिना, रहस्यों का उद्घाटन किये बिना, दुनिया में विकास नहीं हो सकता और शक्तियाँ उपलब्ध नहीं हो सकतीं। प्राचीन आचार्यों ने अनेक रहस्य खोजे। आज हम उन सिद्धान्तों को तो समझते हैं, पर वे रहस्य याद नहीं रह पाये। उनकी विस्मृति हो गयी। विस्मृति के कारण उन रहस्यों की हम ठीक से व्याख्या भी नहीं कर सकते और उन सबका प्रयोग भी नहीं कर सकते।
इस प्रसंग में मैं एक घटना की चर्चा करूँगा। अभी-अभी मैंने एक बात पढ़ी थी कि उत्तर की ओर सिर कर नहीं सोना चाहिये; अर्थात् दक्षिण की ओर पैर कर नहीं सोना चाहिये। यह बात हमारे यहाँ प्रचलित भी है। कुछ इसे अन्धविश्वास भी मानते हैं। वे कहते हैं सोते समय पैर चाहे दक्षिण में हों, उत्तर में हों, पश्चिम में हों, पूर्व में हों, क्या फर्क पड़ता है ? कहीं तो सिर करना ही होगा। कहीं तो पैर करने ही होंगे ! किन्तु आज प्रत्येक चीज की वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत की जा रही है। विज्ञान रहस्यों के उद्घाटन के पीछे इस तरह पड़ा हुआ है कि आज कोई भी व्यक्ति किसी चीज को अन्धविश्वास कहता है तो वह उसका दुःसाहस है। पुराने जमाने में कह सकता था, आज नहीं कह सकता। अभी-अभी इसकी वैज्ञानिक
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तीर्थंकर : नव. दिस. १९७७
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