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व्याख्या करते हैं और आन्तरिक जगत् (व्यक्तिगत जीवन) की जो घटनाएँ हैं उनकी भी व्याख्या करते हैं।
अन्तर्जगत् चेतना का जगत् है, केवल चेतना का जगत् है । यहाँ केवल चेतना होती है और कुछ नहीं होता। इसे हम आनन्द कहें, शक्ति कहें, ज्ञान कहें, कुछ भी कहें यहाँ केवल चेतना है। उस चेतना में जो कुछ है वह आनन्द भी है, शक्ति भी है, ज्ञान भी है। यह सारी चेतना है और कुछ नहीं है।
बाहर का जगत् नाना प्रकार का जगत् है। यहाँ अनेक द्रव्य हैं, पदार्थ हैं, अणु-परमाणु का संघटन है। भीतर केवल चेतना है। उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।
एक है चेतना का जगत् और एक है पदार्थ का जगत् । जब हम चेतना के जगत् की ओर बढ़ते हैं, वहाँ जो भी निर्णय प्राप्त करते हैं, जहाँ पहुँचते हैं, वह है हमारा अध्यात्म । चेतना से हटकर, दूसरों के साथ जुड़कर, हम जो कुछ करते हैं वह है हमारा भौतिक जगत्, वस्तु-जगत् ।
रहस्य की खोज के लिए हमें कुछ गहराई में उतरना पड़ता है। कई बार ऐसा होता है कि निमित्त बनता है और रहस्य का उद्घाटन हो जाता है। कई बार ऐसा होता है कि निमित्त नहीं बनता, अनायास ही अतल गहराई में डुबकी लगाने का मौका मिलता है और रहस्य का उद्घाटन हो जाता है।
आपने रहस्य का उद्घाटन का सिद्धान्त जाना है और अनेक घटनाएँ भी सुनी हैं।
एक व्यक्ति पहाड़ के पास बैठा था। झरना बह रहा था। एक हिरनी आयी। उसने लम्बे समय तक अपनी एक टांग को पानी में डुबोये रखा। दूसरे दिन भी आयी। तीसरे और चौथे दिन भी आयी। चार दिन तक वह लंगड़ाते-लंगड़ाते आयी और पाँचवें दिन वह ठीक ढंग से चलने लगी। उस व्यक्ति ने सोचा - यह रोज क्यों आती रही ? उसने पता लगाया। हिरनी के पैर को देखा। उसका पैर ज़ख्मी था। हड्डी टूट-सी गयी थी। दो-चार दिन के पानी के उपचार से वह पैर ठीक हो गया। व्यक्ति ने उस उपचार को पकड़ा। प्राकृतिक चिकित्सा का प्रारंभ हो गया। जल के उपचार, मिट्टी के उपचार का प्रारंभ हो गया। ___ एक व्यक्ति बैठा था। उसने देखा बच्चा रो रहा है। उसका श्वास फूल रहा है। श्वास गहरा आ रहा है, पेट फल रहा है, और सिकुड़ रहा है। वह ला-ला-ला की अव्यक्त ध्वनि भी कर रहा है। व्यक्ति ने ध्यान दिया। सोचा, इस ध्वनि के साथ कुछ हो रहा है। उसने प्रयोग किया। ध्वनि-चिकित्सा का विकास हो गया। व्यक्ति ने ध्वनि-चिकित्सा का विकास किया शब्दों के उच्चारण के द्वारा। इस पद्धति से बीमारियों को मिटाना जाना।
चौ. ज. श. अंक
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