SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वे चाहते थे सारा जैन समाज आधुनिकता के परिवर्तन को झेले और नयी परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को समायोजित करे । भारत के प्रायः सभी धर्म यहाँ तक कि इस्लाम भी इस सुधारवादी क्रान्ति से बच नहीं पाया था । १८७७ ई. में नेशनल मोहम्मडन एसोसिएशन की स्थापना ने मुसलमानों में भी नवजागृति की एक लहर को जन्म दिया था । १८६९ ई. में जब राजेन्द्रसूरिजी की धार्मिक क्रान्ति एक स्पष्ट आकार ग्रहण कर रही थी, तब हिन्दुस्तान की धरती पर एक बड़ी शक्ति महात्मा गांधी का जन्म हुआ । सूरिजी की यति- क्रान्ति यद्यपि कहने को छोटी और एक सीमित क्षेत्र में हुई घटना थी किन्तु उसने जिन मूल्यों की रचना की थी वे महत्त्वपूर्ण थे । उनकी क्रान्ति का मूल आधार था : " पवित्र और निष्कलंक साधनों के उपयोग से ही एक निष्कलंक और निर्मल लक्ष्य की प्राप्ति सम्भव है, अतः लक्ष्य के अनुरूप ही माध्यम भी निर्दोष और पवित्र होना चाहिये ।" जैन यति साधना तो अपरिग्रह की कर रहे थे किन्तु स्वयं महान् परिग्रही थे; उनकी साधना में अहिंसा का प्राधान्य था किन्तु वे आयुध, यहाँ तक कि तमञ्चा भी रखते थे। अतः साधनों की शुचिता पर जो बल सूरिजी ने दिया आगे चलकर महात्मा गाँधी ने भी राजनीति, अर्थ और समाज के क्षेत्र में उस पर जोर दिया । गाँधी जी हमेशा कहते रहे कि हमें "लक्ष्य के अनुरूप साधनों का ध्यान रखना चाहिये ।" उनके जीवन-दर्शन में ज्यों-त्यों और जैसे-तैसे साधनों के द्वारा सिद्धि उपलब्ध करने की रियायत नहीं थी । स्पष्ट शब्दों में कह दिया गया था कि साधनों की शुचिता का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाए। सूरिजी का " नौ कलमी" क्रान्तिपत्र उनकी इसी भावना का प्रतीक है । इसके द्वारा उन्होंने यति-संस्था को ही आमूलाग्र नहीं बदला वरन् सम्पूर्ण भारतीय चरित्र को प्रभावित किया । जैनधर्म और दर्शन की जिस बुनियाद को सांसारिक प्रलोभनों और साधन - सुविधाओं की लालसा के कारण विस्मृत कर दिया गया था, सूरिजी ने उसका पुनरुद्धार किया। उनकी इस क्रान्ति ने साधुओं के साथ ही जैन सामाजिकों अर्थात् श्रावकों को भी प्रभावित किया । जैन लोग व्यापारी थे / हैं । व्यापार में साधनों की शुचिता का ध्यान आमतौर पर रखना सम्भव नहीं होता है, किन्तु सूरिजी ने इस व्यापारी कौम को भी साधनों की शुचिता की शिक्षा दी और उन्हें सादगी, सद्विचार और स्वाध्याय की दिशा में प्रवृत्त किया । सूरिजी की क्रान्ति के पूर्व भारत में अंग्रेज रेल की पाँतें बिछा चुके थे । कई महापुरुषों ने जन्म ले लिया था, और भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम लड़ा जा चुका था । हिन्दी भाषा ने भी अपना विकास आरम्भ कर दिया था । अंग्रेजों ने कलकत्ता, मद्रास और बम्बई में लन्दन विद्यापीठ की नकल पर तीन यूनिवसिटियों की स्थापना कर दी थी । इन यूनिवर्सिटियों में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी (शेष पृष्ठ २०० - २०३ पर) तीर्थंकर : जून १९७५/९४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520602
Book TitleTirthankar 1975 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy