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(पृष्ठ १६२ का शेष) जाति का जन्म कुछ सदियों से हो गया था, जिसके नबियों के समान शक्तिम स्वर में धार्मिक नेता कहीं और कभी न बोले थे। वह जाति थी यहूदी, फिलिस्तीन की जूदिया, इस्राइल की इब्राहीम और मूसा की सन्तान । शाब्दिक शक्ति और चुनौती भरी वाणी में असत्य का सामना और अत्याचार का प्रतिकार करने में उनका संसार में कोई सानी नहीं। उन्हीं में कालान्तर में ईसा और बतिस्मावादी योहन का जन्म हुआ। पर हम बात तो उनकी कह रहे हैं, जिन्होंने खूनी असुर सम्राटों को ललकारा था और निर्भीकता का-राजनीति और धर्म के क्षेत्र में साका चलाया था, उनकी जो महावीर के समकालीन थे, उनको ही कुरूष ने खल्दी सम्राटों के बन्धन से बाबुल में मुक्त किया था।
एकेश्वरवाद की कल्पना सबसे पहले यहूदियों ने की, यहवा अथवा जेहोवा ने की, जिसका नाम ऋग्वेद' तक' में विशेषण के रूप में इन्द्र, वरुण आदि महान् आर्य देवताओं के नामों के साथ जुड़ा मिलता है। यहूदियों, विशेषकर उनके नबियों के लिए अन्य देवता का इस्राइल में पूजा जाना असहय था। अत्याचारियों को धिक्कारने का सत्-कार्य एलिजा और एलिशा के समय ही आरम्भ हो गया था। इस्राइया ने महावीर से सौ साल पहले ही शान्ति के पक्ष में युद्ध के विरोध में, पहली आवाज उठायी थी--"उन्हें अपनी तलवारों को गलाकर हल के फल बनाने पड़ेंगे और एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के विरुद्ध तलवार नहीं उठा सकेगा।" जैरेमिथा ने असुर सम्राट असुरबनिपाल के विध्वंसात्मक आक्रमण से अपनी जनता को तो आगाह किया ही था, उस सम्राट को भी उसकी खूनी युद्ध-नीति के लिए धिक्कारा था।
____ नाहूम के जीवन-काल में ही महावीर जन्मे थे। सर्वहर्ता-सर्वनाशी असुर सम्राटों की राजधानी निनेवे को उसके विध्वंस के पूर्व , नाहूम ने चुनौती और धिक्कार के स्वर में ललकारा था-"देख और सुन ले, निनेवे, इस्राइल का देवता तेरा दुश्मन है-देख, तेरी कारसाजी, तेरे खूनी कारनामे, तुम्हें नंगा करके, हम राष्ट्रों
और जातियों को दिखा देंगे। त चैन की नींद नहीं सो पायेगा, आग की लपटों में जल मरेगा। तेरे शासक, तेरे अभिजात बिखर जाएँगे, दूर-दूर पहाड़ी चोटियों पर टुकड़े-टुकड़े होकर कुचल जाएँगे। उन्हें कोई इकट्ठा न कर पायेगा, तेरा कोई नामलेवा, पुरसाहाल न रहेगा। सुनले, निनेवे, सावधान हो जा।" और नाम की आवाज अभी माहौल में गूंज ही रही थी कि निनेवे जलाकर नयी उठती हुई आर्यों की शक्ति से नष्ट कर दिया गया ।
इस्राइया जब अपनी शक्तिम भविष्यवाणी से दिशाएँ गुंजा रहा था तब महावीर ४० साल के थे। उसने अपनी आवाज से अपनी जनता यहूदियों को फिर - फिर जगाया । इसी के समय बाबुली कैद से कुरूष ने, महावीर के जीवन-काल में ही नबियों को छुड़ाया । जहाँ वे दशकों से बन्दी रहे थे, और धार्मिक नेताओं के साथ वह भी इस्राइल लौटा और कुछ ही दिनों बाद' सुलेमान (सलोमन) का विध्वस्त मंदिर फिर जुरूशलम में उठ खड़ा हुआ।
इस्राइली यहदी नबी बाबली कैद में कूचले जाते रहे, पर उन्होंने अपने धार्मिक विश्वासों पर आँच नहीं आने दी, न अपना धर्म छोड़ा, न यहवे के अतिरिक्त किसी दूसरे देवता को स्वीकार किया। उसी कैदखाने में उन्होंने अपनी धर्म-पुस्तक के पाँच आधार “पेन्तुतुत्व" लिखे, जो बाइबिल में पुरानी पोथी “ओल्ड टैस्टामेन्ट' के नाम से प्रसिद्ध हुए।
श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वर-विशेषांक/१९९
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