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हुए इसके दसवें संस्करण तक कोशों का काम हस्तलिखित ही होता रहा । दसवें संस्करण का लेखन सन् १९०२ तक हुआ जो कुल ३१ जिल्दों में सम्पूर्ण हो सका। ग्यारहवाँ संस्करण लगभग १५० से अधिक विविध विषयों के विद्वान् लेखकों के सहयोग से तैयार कर न्यूयार्क के प्रेस में छपवा कर सन् १९१० में प्रकाशित किया गया था। चौदहवें संस्करण के सम्पादन-कार्य में ३५० से भी अधिक विद्वानों का सहयोग प्राप्त कर इसे सन् १९२९ में प्रकाशित किया गया। इसके आगे सन् १९३८ तक इन्साइक्लोपीडिया-ब्रिटानिका के कुल अठारह संस्करण अनेक जिल्दों में प्रकाशित किये जा चुके हैं। इस विश्व-कोश की तैयारी में अनेक विद्वानों का सहयोग, सदियों तक अनवरत श्रम और लाखों रुपयों का व्यय अंग्रेज सरकार द्वारा किया गया । इसका संकलन-संपादन-कार्य अब भी नियमित चल रहा है और अस्खलित आगे भी चलता रहे तो कोई आश्चर्य नहीं; क्योंकि विश्व-ज्ञान अपरिमेय है-उसे समूचा ग्रन्थबद्ध करना कभी सम्भव नहीं । अब तो प्रायः जगत् की बहुतेरी भाषाओं के कोश बन चुके हैं। हिन्दी जैसी विकसित भाषाओं के भिन्न अंगों की शब्द-सम्पदा के अलग-अलग कोशों का निर्माण कर शब्द-समृद्धि में वृद्धि किये जाने के शासकीय स्तर पर प्रयास किये जा रहे हैं जिससे उनका अभ्युदय सुनिश्चित है।
___ यूरोपीय भाषाओं में आंग्ल भाषा का विशिष्ट स्थान है। यूरोप के अतिरिक्त जहाँ-जहाँ अंग्रेजी उपनिवेश या शासन-व्यवस्था रही वहाँ अंग्रेजी भाषा का व्यवहार विस्तीर्ण हुआ; अतः संसार की समृद्ध भाषाओं में अंग्रेजी का स्थान सर्वोपरि है। इसके सुप्रसिद्ध एवं प्रामाणिक शब्दकोश ‘एनसाइक्लोपीडिया-ब्रिटानिका' में साहित्य की परिभाषा इस प्रकार है : “साहित्य एक व्यापक शब्द है जो यथार्थ परिभाषा के अभाव में सर्वोत्तम विचार की उत्तमोत्तम लिपिबद्ध अभिव्यक्ति के स्थान में व्यवहृत हो सकता है। इसके विचित्र रूप जातीय विशेषताओं के अथवा विभिन्न व्यक्तिगत प्रकृति के अथवा ऐसी राजनैतिक परिस्थितियों के परिणाम हैं जिनसे एक सामाजिक वर्ग का आधिपत्य सुनिश्चित होता है और वह अपने भावों तथा विचारों का प्रचार करने में समर्थ होता है।"
___साहित्य विषय में श्री विलियम हेनरी हडसन लिखते हैं : 'जैसे प्रत्येक ग्रन्थ की ओट से उसके रचयिता और प्रत्येक राष्ट्रीय साहित्य की ओट में उसे उत्पन्न करने वाली जाति का व्यक्तित्व छिपा रहता है। वैसे ही काल-विशेष के साहित्य की ओट में उस काल के जीवन को रूप विशेष प्रदान करने वाली व्यक्तिमूलक एवं अव्यक्तिमूलक अनेक सहशक्तियाँ काम करती रहती हैं।' · · · 'साहित्य उन अनेक साधनों में से एक है जिसमें काल-विशेष की स्फूर्ति अपनी अभिव्यक्ति पाकर उन्मुक्त होती है। यही स्फूर्ति परिप्लावित होकर राजनैतिक आन्दोलन, धार्मिक विचार, दार्शनिक तर्क-वितर्क और कला में प्रकट होती है। प्राचीन वेद-ग्रन्थों में पाये जाने वाले तीर्थंकरों के उल्लेख से प्रकट है कि जैनागम वेद-ग्रन्थों से प्राचीन
श्रीमद राजेन्द्रसूरीश्वर-विशेषांक/१३३
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