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भी प्रमाण प्रस्तुत किया । उन्होंने अपने समकालीन जीवन में यत्र-तत्र सैंध डालकर यह हुकृति की कि यह जो अतीत को नकारा जा रहा है, वह व्यर्थ है, भ्रामक है, भारत का अतीत सशक्त है, उज्ज्वल है, प्रेरक है, सार्थक है, वह केवल देश के बुझते हुए दीये ही नहीं वरन विदेशों के निष्प्राण दीयों में भी जान डाल सकता है । सूरिजी ने इस पर कि कौन कहाँ क्या कर रहा है बिना ध्यान दिये अपना कर्तव्य किया और चारित्रिक प्रामाणिकता और शुचिता को लाने के अपने मिशन में वे पूरी ताकत से जुटे रहे। उनकी “ तीनथुई क्रान्ति”, जो है धार्मिक, किन्तु वह भी उनकी इसी व्यापक क्रान्ति का एक महत्त्वपूर्ण भाग है । इसके द्वारा उन्होंने लोगों को तर्कसंगत बनाया और अन्धविश्वासों से मुक्त किया ।
भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा गुण है समन्वय । उसने अब तक विश्वसंस्कृति की जितनी विविधताओं को पचाया और आत्मसात किया है, संसार की ऐसी और कोई संस्कृति नहीं है जो इस तरह विषपायी और अमृतवर्षी हो । उसने जहर पिया, अमृत बाँटा, यही उसके मृत्युंजयी होने का एक बहुत बड़ा कारण भी है। सूरिजी ने भी वही किया जहर पिया और अमृत बाँटा, कांटे सहे, और फूल दिये; अंधकार के बीच से गुजरकर प्रकाश देना भारतीय संस्कृति का अप्रतिम व्यक्तित्व है | श्रमण संस्कृति के उज्ज्वल और जीवन्त प्रतीक के रूप में सूरिजी ने विश्वसंस्कृति को जो दिया है, वह अविस्मरणीय है । “अभिधान राजेन्द्र” उनकी विश्वसंस्कृति को इतनी बड़ी देन है कि उसे कभी भुलाया नहीं जा सकेगा । सूरिजी का समग्र जीवन और उसका जीवन्त प्रतिनिधि " अभिधान - राजेन्द्र" विश्व-संस्कृति का अविस्मरणीय मंगलाचरण है । जिस व्यक्ति ने अपने तपोनिष्ठ आचरण से शस्त्रागारों को शास्त्रागारों में बदला हो, संचार और यातायात की असुविधाओं के होते हुए भी जिसने अपनी चारित्रिक निर्मलताओं से अन्धविश्वासों, अरक्षाओं, रूढ़ियों और अन्धी परम्पराओं में धंसी मानवता को पैदल घूम-घूमकर निर्मल और निष्कलंक बनाया हो, उसके प्रति यदि वन्दना में हमारी अंजलियाँ नहीं उठतीं और उसके जीवन से यदि हम प्रेरणा नहीं लेते तो न तो हमसे बड़ा कोई कृतघ्नी होगा और न कोई अभागा । दुर्भाग्य है कि हम अपने दीये से प्रायः रोशनी नहीं लेते, दूसरों के दीये से, जो अक्सर बुझे हुए ही होते हैं, रोशनी लेने का यत्न करते हैं, क्या हम अपने घर के दीयों को पहिचानने का फिर एक प्रयास करेंगे ? क्योंकि आज हम फिर एक ऐसे मोड़ पर आ खड़े हुए हैं जहाँ अंधेरा है, अनिश्चय है, और असंख्य संदेह हैं |
श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वर - विशेषांक / १
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