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________________ महत्ता का प्रतिपादन वे नित्य करते हैं । वे नियमों के पालक हैं। नियमों से बँधा हुआ जीवन ही मुक्ति-लाभ करता है। जो सरिता कूल तोड़ देती है, वह महाविनाश का कारण बनती है। किनारों के बंधन में चलने वाली नदी सागर की गोद में पहुँच जाती है। मुनिश्री के मुख से निकला हुआ एक-एक शब्द सार्थक है; निरर्थक कुछ उनके मुंह से निकलता ही नहीं। उनका हर शब्द एक सूत्र है । कहा गया है-- "अल्पाक्षरमसन्दिग्धं सारवद् गूढ निर्णयम् । निर्दोषं हेतुमत् तथ्यं सूत्रमित्युच्यते बुधैः ।।" . अर्थात्-विद्वानों ने सूत्र का लक्षण करते हुए उसे अल्पाक्षर, सन्देहरहित, सारग्राही, गूढ़अर्थयुक्त, दोषरहित, सोद्देश्य और तथ्यसहित निरूपित किया है। ___ मुनिश्री नपा-तुला बोलते हैं, लाग-लपेट की बातें नहीं करते, संकल्प-विकल्पों से दूर रहते हैं, सरल परिणामी हैं और व्यर्थ के वाद-विवादों में अपना समय नष्ट नहीं करते। जिस गाँव को जाना नहीं, उसकी वे राह भी नहीं पूछते । हर अच्छी बात को, चाहे वह जैन शास्त्रों की हो अथवा बाइबिल, कुरान या वेद की, स्वीकार करने के लिए वे हर समय उद्यत रहते हैं । किसी भी बात पर यह मानकर अड़ जाना उनका स्वभाव नहीं कि यही सत्य है तथा बाकी लोग जो कहते हैं, वह सब का सब झूठ और निराधार है। उनके पास जमीन का एक टुकड़ा भी नहीं है, लेकिन उनके दिल का रकबा बहुत बड़ा है । वे सम्पूर्ण विश्व को कटुम्ब के समान समझते हैं। उन्होंने सभी धर्मों को एक सूत्र में पिरोया है । वे एक महान् सूत्रकार है। उन्हें शतशः प्रणाम ! 00 'स्वाध्याय' का महत्व सर्वविदित है । स्वाध्याय ज्ञान की उपासना है । ज्ञानवान होकर चारित्र्य का पालन यथाशक्ति करना मानव का कर्तव्य-धर्म है । संसार और संसार से परे का ज्ञान-विज्ञान ग्रंथों में संजोया हुआ है। जो प्रतिदिन उस ज्ञान में से थोड़ा भी संचय करता है ; वह श्रीमान्, बहुश्रुत, स्व-समयी, ज्ञानी और वाग्मी बन जाता है। -मुनि विद्यानन्द ४६ तीर्थंकर | अप्रैल १९७४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520601
Book TitleTirthankar 1974 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1974
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size5 MB
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