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उमेश जोशी
रोशनी का इतिहास
दर्शन, धर्म, कला, साहित्य और संस्कृति की अखण्ड ज्योति हैं युगपुरुष श्री मुनि विद्यानन्द जो अपनी दिव्य रश्मियों से प्रकाशित कर रहे हैं धुंधलकों की गहन घाटियों को
आत्मिक सौन्दर्य की उज्ज्वल ज्योत्स्ना को धरती पर विकीर्ण करते हुए 1 प्रज्ञा जहां दम तोड़ चुकी हो कर्मठता का शव पड़ा हुआ सड़ रहा हो युग के पौरुष का अभिमन्यु प्रवञ्चनाओं के चक्रव्युह में फँसकर जहाँ मरता है रोज
पक्षपाती कौरवों के सभागार में लालची नीतियों के शकुनि के इंगितों पर व्यभिचारी दुःशासन शिष्टता को कर रहा हो नग्न अपनी हैवानियत के शिला-खण्ड पर बैठकर और जहाँ समाज को ब्रेन कैंसर ने दबोच लिया हो सम्वेदनाओं को जड़ता के चौखटे में जड़ते हुए । वहाँ इन्द्रधनुषी आलोक के शीर्षस्थ हस्ताक्षर
मुनिश्री विद्यानन्द - विशेषांक
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