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जागृत किया गया है। बारहवीं शती के आदि में ही पार्श्वनाथ नामक कवि हुआ जिसने पार्श्वनाथ पुराण की रचना की है। करीब १२३५ ई. में गुणवर्म ने पुष्पदंत पुराण व चंदनाष्टक की रचना की है। इसी काल में कमलभव नामक कवि हुआ जिसने शांतीश्वर पुराण की रचना की है, जिसमें बहत संदर रूप में भगवान् शांतिनाथ का चरित्र चित्रित किया है। इस शती के मध्यभाग में महाबल कवि हुआ, जिसने नेनिमाथ पुराण की रचना की है।
इन सब ग्रंथकर्ता, कृतिकर्ताओं का यहाँ नामोल्लेख मात्र किया है। इनको तत्कालीन व उत्तरकालीन विद्वानों ने अनेक उपाधियों से विभषित किया है, इनका विशेष परिचय देने से एक स्वतंत्र ग्रंथ हो जाएगा अतः यहाँ उनका दिग्दर्शन मात्र कराया गया है। यदि विस्तृत परिचय देखना हो तो श्री आ. कुंथ सागर ग्रंथमाला से प्रकाशित पंप-युग के जैन कवि, यह पुल्तक देखें। पंप के बाद करीब ४०० वर्षों में ही ये सब कवि हुए हैं जिन्होंने पंप का आदरपूर्वक स्मरण ही नहीं किया है। अपितु अनुकरण भी किया है। इसलिए इन्हें पंप युग के कवि कहते हैं जो सार्थक है।
कवि-चक्रवर्ती जन्न
जन्न महाकवि कहलाता था। कवि-चक्रवर्ती उसकी उपाधि थी। ई. सन ११७० से १२३५ के बीच जन्न महाकवि ने अपनी महान कृति के द्वारा कर्नाटक को उपकृत किया था। इसने अपनी कृति यशोधर चरित में अपने रचना-कौशल का दर्शन कराया है। पदलालित्य, भाव-प्रभाव, कल्पना-कौशल इसके काव्य की विशेषता है। इस काव्य का विषय यशस्तिलक चंपू मुल संस्कृत काव्य का है। यशोधर महाराज के चरित्र को कर्म-विधान के विचित्र रूप के द्वारा प्रदर्शित कर कवि ने संसार को असारता का दर्शन कराया है। जन्न महाकवि ने यशोधर चरित को वही स्थान प्राप्त है जो संस्कृत साहित्य में यशस्तिलक चंपू को प्राप्त है, इतना कहने से इसके काव्य की महत्ता समझ में आ जाएगी।
इसी प्रकार अनेक ग्रंथकार उभय भाषा कोविद हुए हैं। उनकी संस्कृत एवं कन्नड में अच्छी गति थी। इसलिए वे उभय भाषाचक्रवर्ती कहलाते थे, उनमें से हस्तिमल्ल का नाम समादर के साथ लिया जा सकता है। हस्तिमल्ल ने कन्नड में भी आदिपुराण की रचना की है। संस्कृत में संहिता, नाटक व ग्रंथों की रचना की है।
१४ वें शतक में भास्कर कवि ने जीवंधर चरित को एवं कवि बोम्मरस ने सनत्कुमार चरित्र एवं जीवंधर चरित की रचना की है। इसके बाद १५ वें शतक' में भी अनेक अर्नाटक कवियों ने अपनी रचनाओं से इस साहित्य-क्षेत्र को समृद्ध किया है। १६ वें शतक के प्रारंभ में मंगरस कवि ने सम्यक्त्व कौमुदी, जयनृप काव्य, नेमीश जिन संगति, प्रभंजन चरित व सुपशास्त्र आदि ग्रंथों की रचना की। इसी
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तीर्थंकर | अप्रैल १९७४
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