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________________ प्रकार साळव कवि ने भारत व दोडुय ने चंद्रप्रभचरित का निर्माण लगभग इसी समय किया है। महाकवि रत्नाकर १६वीं शती में यह प्रतिभावंत कवि हुआ है। इसका परिचय इस लेख में नहीं दिया तो हमारा लेख अधूरा रह सकता है। हमारे लिए यह प्रिय कवि है। इसके द्वारा सांगत्य छंद में रचित भरतेश्वर वैभव नामक शृंगार-आध्यात्मिक ग्रंथ १० हजार छंदों में विरचित है। इसीसे सांगत्य-युग का प्रारंभ होता है। सांगत्य कन्नड में एक विशिष्ट कर्ण मधर गेय छंद है। कवि ने इस ग्रंथ में भोग-योग का सामंजस्य कर अंत में एक का त्याग व दूसरे का ग्रहण करने का विधान किया है। इसका समय १५५७ ई. माना जाता है। भरतेश वैभव को इसने भोग विजय, दिग्विजय, योग विजय, मोक्ष विजय व अर्क कीति विजय के नाम से पंचकल्याणों में विभक्त किया है। इस आध्यात्मिक कथा के नायक आदि प्रभु के आदि पुत्र भरतेश हैं जो तद्भव मोक्षगामी हैं। कथा को आध्यात्मिक व शृंगारिक ढंग से वर्णन करने की कवि की अनूठी शैली है। कर्नाटक के घर-घर में यह पढ़ा जाता है। लेखकः द्वारा इसका हिन्दी अनुवाद हुआ है, उस पर से गुजराती व मराठी अनुवाद भी हो चुके हैं। भारतीय साहित्य अकादमी के अन्तर्गत अंग्रेजी अनुवाद भी हो रहा है। भारतीय गौरव ग्रंथों में यह एक है। इसने रत्नाकर, अपराजित व त्रिलोक नामक तीन शतकों की भी रचना की है, जो केवल आध्यात्मिक विषय का प्रतिपादन करते हैं। कुछ आध्यात्मिक भजनों का भी निर्माण इसके द्वारा हुआ है। इसके बाद सांगत्य छंद में ग्रंथ-रचना करने वालों का मार्ग प्रशस्त हो गया है। उन कवियों का यहाँ हम उल्लेख मात्र करते हैं। बाहुबलि कवि ने (१५६०) नागकुमार चरित, पायण्ण वतिने (१६०६) सम्यकत्व कौमुदी, पंचबाण ने (१६१४) भुजबलि चरित्र की रचना की है। इसी प्रकार चंद्रम कवि ने (१६४६) कार्कल गोम्मट चरित, धरणी पंडित ने (१६५०) बिज्जण चरित, नेमि पंडित ने (१६५०) सुविचार चरित, चिदानंद ने (१६८०) मुनिवंशाभ्युदय, पद्मनाभ ने (१६८०) जिनदत्त राय चरित्र, पायण्ण कवि ने (१७५०) रामचंद्र चरिते, अनंत कवि ने (१७८०) श्र. बे. गोम्मट चरित, धरणी पंडित ने वरांग चरित, चंद्र सागर वर्णी ने (१८१०) रामायण, चार पंडित ने भव्यजन चिंतामणि एवं इसी समय देवचंद्र ने राजवली कथाकोष की रचना की है। पंप का युग चंपू-युग के नाम से प्रसिद्ध है तो रत्नाकर के युग को सांगत्य-युग के नाम से निस्संदेह पुकार सकते हैं। सचमुच, ये दोनों साहित्य-जगत् के युगपुरुष हैं। विभिन्न विषयों को जैन साहित्यकारों की देन नपतुंग द्वारा विरचित कविराज मार्ग से जैन कवियों की साहित्य-सेवा पर यथेष्ट प्रकाश पड़ता है। छंद, अलंकार, वैद्य, ज्योतिष, सिद्धांत, न्याय, व्याकरण, मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक २११ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520601
Book TitleTirthankar 1974 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1974
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size5 MB
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