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________________ चित-अचित सब किसी दर्पण की तरह जिसमें उजागर स्वच्छ, सांग समान नाश और उत्पत्ति प्रतिबिम्बित जहाँ प्रत्यक्ष सह-अनुमान जो जगत् अध्यक्ष सूरज की तरह राहें दिखाता वह विधाता ज्ञान का होकर नयन से हृदय तक उतरे हमारे वह संवारे, स्वप्न-जागृति सब संवारे ! दो आंख में जिनके नहीं हैं लाल डोरे भक्त-मन के निकट प्रकटित द्वेषलव जिनके निहोरे एकटक, कमलाक्ष, स्फुटमूर्ति प्रशमित नित्य-निर्मल नयन-पथ से हृदय में आयें, पधारें वे अचंचल ! मुनिश्री विद्यानन्द - विशेषांक গিड़ियाং Jain Education International नयनपथगामीभवतुमे [] भवानीप्रसाद मिश्र तीन इन्द्र-मुकुट-मणि- आभा जिनके युगल कमल-पद-तल धोती है जिनके चरणों की गति - सरिता अखिल ताप-शामक होती है जिनका ध्यान किया और ज्वाला जाग्रत बुझी जगत् की क्षण में महावीर स्वामी आयें वे नयन - पन्थ से भीतर, मन में ! For Personal & Private Use Only चार जिनके पूजन की धुन में गतिवंत किसी दादुर ने दबकर मत्तगयन्द छन्द के नीचे स्वर्गिक श्री सुषमा के आलय नयी एक महिमा से सींचे गुण-समृद्ध, सुखनिधि वह दादुर देवतुल्य जिस कृपा-कोर से महावीर स्वामी वे उतरें मन के भीतर नयन - डोर से ! १६९ www.jainelibrary.org
SR No.520601
Book TitleTirthankar 1974 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1974
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size5 MB
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