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________________ ७८ अनुसन्धान-७८ एक नारी छइ झाकझमाली, तेहनई पासि आवइ वनमाली; चोसठि चांपां लावि भेटइ, राजा सरीखो तेहनइं पेटइं; व्यवसाया कुल ऊपनी, ऊभी राजदुआरी; करण हरिआली पाठवइ, राजा भोज विचारि. [पालखी] काली छइ पण नवि कस्तूरी, टांगां नाखइ पणि नहि सूरी; वरण अढार तणइं भक्षि आवइ, तेहनई अंगि स्नान ज नावइ. [माखी] एक नारी रहइ नगर मझारि, कोलं-काचुं करइ आहार; छपर लइ बिडं चालइ, बइ लेइ नई ऊपरि घालइ; च्यार आंखि नई न देखइ, ए हरिआली कहो कुण लेखइ. [घंटी] त्रिपुर न दीधी शंकरह रामायणि हणूएण । भारथि भीम न दीन्ही या सा मुझ दिन्ह पिएण ॥ [पीठ] एक नारी ओचंता आवे, वस्ती नगरी उजड कहावे; नारी नारीने ठिकाने गई, उजड नगरी वसति थई. [ऊंघ] एक नारी संसारि(र)मां प्रीत पुरुषसुं मांडे, जोगी-जती-तापसी(स) तिहांसुं ततखिण छांडे; वांकासुं वांकी रहे, समासुं समवड रहे, ददु भख्यण (?) इम कहे ते जूनेगढ वासे वसे. [पाघडी] तेलकर्करये (?) दस वीस जल-रणमांहे माणे, ताके भमर नही पण पंख भू उपरि ते चाले: नरके नाम नाम है वसिहर जैसा मुक्ख, कवि गद्द कहे सुणो ठक्कुरा उसे च्यार पग सौ नक्ख. [काछबो] कन्या-मीन-मिथुन मिलि चले, कुंभ रास साथे संचरे; वृषरास हे ताको नाम, कहो अरथ के छांडो गाय. [बीडो] पातसरोवर नै कठफाल रहै सदा सिवालै, भरीयो झोला खाय रहै धर-आभ विचालै;
SR No.520580
Book TitleAnusandhan 2019 10 SrNo 78
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
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