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ओक्टोबर - २०१९ गूढा - प्रहेलिका - समस्या हरियाली-८
- सं. उपा. भुवनचन्द्र
गूढा :
मालतीकुसुमइ भ्रमर भाग छठाना बइठा, विकचकमलवनखंडि भाग त्रीजाना पइठा; केतकी संगि वली भाग चुथु ते जाणुं, पाडल केरे फूलि भाग पंच सु वखाणुं; त्रीसमु भाग जातीकुसुमि एक भमर गगनइ फिरइ, तुझे कहु विबुध बुद्धि करी भमरसंख केती सिरइ ॥ [१६०] विवहारी नर चतुर मधुर दाडिमफल लाविउ,
बीजउ तेहनउ भाग भूपनइ भेटि चलाविउ; . पंचम सुंदर भाग मित्रमंदिर पाठविउ,
अठम भागि जेह तेह जिन आगलि ठवीउ, दसमु ज भाग सुतनई दिउ त्रणि मधुर फल तिहां रह्यां कल्याणसोम कहइ बुधजनो सवि संख्या केतां कह्यां ? [१४०] अचर चरइं चर परिहरई, चरई नई चरवा जाय; बारई मास वलोइइं, डुकइं(?) पणि नवि जाय. [सराण] जलधारीमा ईश्वर मोटो फरतां पाणी काढइ रे;
आंखि भरी पोढा पनोता, सीआलानई दिहाडइं रे. [घाणी] नारि नारिकांने चडी, प्रजापति सुथारं घडी; अबला सबला ताणइ दोर, ए अरथ न कहइ ते माणस ढोर.
. [वलोj] चित्रालंकी कहइंडई पातली, तुरंग पग चल्लइ बाली; न जीव नारि हलावी हल्लइ, चढ्यो पुरुष पणि पालो चल्लइ, करण हरिआली कहइ, चतुर होइ ते समझी लहइ. [चाखडी]