SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६ अनुसन्धान-७८ अन्त्य अक्षर विण जग में मीठो, ए अचंभो त्रिया सिर डीठो. [ ] १२ दधिसुता दधिसुतमुखी, दधिसुत पहिरै जात; दधिसुत करमें ग्रह्यो, दधिसुत देखन जात. [ ] १३ अहिवरणांथी ऊतर्या, पासें तोहि दूर; हररिपुवाहन जे वसै, ते अलगा तोहि हजूर. [ ] १४ वाहामझे तीनि जणा, अज्ज में दीठा कंत; एक मरड्यो, एक फाडियो, एक देखाडै दंत. [ ] में गया कछु ओर है, तें गया कछु ओर; मेरा ठाठ कुठाठ है, तेरा ठाठ है ठौर. [ ] १६ भूमिडसनरिपु बोलीउ, छाडि चल्यो प्रिया मोहि; हरसुतवाहन तास रिपु, आनि मिलावू तोहि. [ ] १७ सूक सरोवर बहोत जल, अलप अणो न पाय; कर झालै आघो कियो, नर झीलै उण माय. [ ] १८ सूक सरोवर अथाग जल, जिनमें बूडै न राई; पीयै हाथी-घोडला, देख सरोवर की चतुराई. [स्तन] १९ सांजै आंबो रोपियो, पाको माझम रात; सवारे ऊठी वेडियो, बिक्यो हाटोहाट. [दहीं] २० मध्यम घरे ऊपजै, उत्तमरे घर जाय; चतुर होय तो समझज्यो, वो रोजी खाली थाय. [सूपडो] २१ थोडी मोली घण सही, नारी माथै नार; करण हीयाली पाठवै, राजा भोज विचार. [इंढवणी] २२ गगन सीचाणो पाडियो, नगर पहोतो सेस; कंता ! | ई मेलज्यो, जिण रे कालजा में केस. [आंबो] २३ पाल चढे कंता केही, सोटी मोटी समूली लही; करण हीयाली परठवै, मरद रे पेटे अवतरी रही. [भांग] २४ C/o. जैन देरासर नानी खाखर (कच्छ)
SR No.520580
Book TitleAnusandhan 2019 10 SrNo 78
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy