________________
ओक्टोबर - २०१९
७३
मारुतसुतपति अरि पुरवासी, पितु वाण भोजन सुहाइ [री]; शिवसुतवाहण भक्ष सनेही,
मार्नु अनल देह दव लाइ [री]. २ (पवन-हनुमान-रावण-लंका-अगस्त्य-ब्रह्मा-हंस-मोती. महादेव-कार्तिकेयमोर-सर्प-चंदन).
दधिसुता पति वाहण कुं सखी री, ता वाहण कइसइं समझावौरी; सूरदा[?स] प्रभु धरम सुयन रिपु
ता अवतारई सलिल वहावौ री. ३ (लक्ष्मी-कृष्ण-गरुड-मन. युधिष्ठिर-सुत-दुर्योधन-मान- जलांजलि).
पावक अरि सुत मित्र तासु नंदन भ्राता गणि, तासु जननी बंधु तासु बाहन चितउ हमनि; तसु अरि भख सुत स्वामि तेहि ज बंधीयउ तास सुअ; 'तासु नाम धरि आदि अंति जिह सुणत हर्ष हूअ; १
जे ग्रंथ दुघट कवि भोग भणि, तत्प्रवीण त्रणमति मुणी; तसु अर्थ गुपत षट्वर्ष लगि, कहउ सकल पंडित गुणी.
श्री हर्षकीर्तिसूरिभिरलेखि. (अभय ग्रन्थालय, बीकानेर, क्र. ४०३६४)