SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४ अनुसन्धान-७८ गूढा - प्रहेलिका - समस्या हरियाली-६ - सं. उपा. भुवनचन्द्र पुरुष पेटे पदमिनी सृष्टि करतार उपाइ, बाप कहीथी नीकली जीवित कही न जाइ; पुरुष विहूणी नारी फिरै नव खंड मज्झारि, उत्तम सेवि(ति) संगति करै, रहइ ठउड अति भारि; सामलवरणे गुण घणा, मन भूपाला रंजणी, ता ता ऊ बूझइ चतुरनर जायै चतुरापण घणी. [कस्तूरी] १ नारि एक निरुपण जाणि ते नरह नीपाइ, जिम जिम अलगी जाइ, ता - था खरी सुहाइ; तेडी आवइ पासि, तास कर किमइ न खंडइ, स्वर्गभूमि संचरइ, वृद्धि(ख)स्युं प्रीति न मंडइ, एरीसी नारी अन्या विना, गुणवंता बंधन सहइ, नगरमांहि दीसइ बहू, गुण मोहइ सुंदर कहइ.[पडाई (पताका)] २ एक नारी पग च्यारि वदन तस एक भणीजइ, श्रवण छइ तस एक नयण-नासि न मुणीजइ; जिमतां दूबल होइ जब तब गले ग्रहीजइ, अहिसि(?)बंधन ते सहइ, कबाह (?) न रोध र नरा, समरसिंघ इम उचरइ, कहो अर्थ पंडित नरा. [त्रपणी (तरपणी)] ३ एक सो उजल नारी, रेहांक जल रेहांवइ, वेणी विण दीसइ बंध चंग चाप बखां बंधावइ; कडि विण पहिरइ वस्त्र सीस विण सेंथो भरावइ, चतुर नर करीइं प्रीति, चंग चालो करावइ. [पोथी] ४ बीज विण नीपजइ, तो स्युं केलि ? केलि नहीं पण उजलवरणो, तो स्युं हंस ? हंस नहीं पण जल उपनो, तो स्युं कमल ? कमल नहीं पिण जलसि हाथ, तो स्युं आगि ?
SR No.520580
Book TitleAnusandhan 2019 10 SrNo 78
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy