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________________ ७२ अनुसन्धान-७८ इंद्रावाहण तसु डसण सो सगलां करि होइ; जिण दीठइ कंचण गलइ, कंता देई सोइ. २४ (गज-दंत(चूडो) - सोहाग.) . संतन सुतथी ऊतर्या, नेइडे वसइ तूं कांइ; हररिपु वाहण जे वसइ, ते दूरे नेइडा चाई. २५ (संतन सुत - चित्त. हर - काम - मन.) जलसू तस सू तास सू तिहि वल्लही म मंडि: हरिणाखी वालंभ कहइ, का छंडिसि का छंडि. २६ (कमल-ब्रह्मा-नारद-कलि.) शशिवाहण सू वाहणो सद्दे जउ न मरेसुः तउ कमलसूआ सू वल्लही, जनमंतरि न करेसु. २७ (महादेव-कार्तिकेय-मोर. ब्रह्मा-नारद-कलि) वनरिपु तसु रिपु तासु रिपु तसु रिपु रिपुह रिपेण; जइवि ण मूकी धाहडी, ता मो मूकि प्रियेण. २८ (सीत-अग्नि-मेह-पवन-सर्प-मोर-कूकडो) मउडाला सुंदरि भणइ, किणि गुण मूंकी धाह; तो दिउं सुर तेतीसां धुरि धवल, तसु वाहण रिपु साहि. २९ (कूकडो. देवोमां पहेला देव = गणेश, - उंदर - मार्जार) राग बिलावल. जलसुत प्रीतम सुत रिपु बंधव, आवध आणण विलष भयो री; सारंग सुतापति मस्तकि राजति, कोटि प्रकाश रिसाय गयो री. १ (कमल-सूर्य-कर्ण-अर्जुन-युधिष्ठिर-तेनुं आयुध = कमल. पर्वत-पार्वतीमहेश-चंद्रमा)
SR No.520580
Book TitleAnusandhan 2019 10 SrNo 78
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
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