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________________ ४४ अनुसन्धान-७८ मनमथनई जीपेवानि अरर्थि, अरस विरस आहारी रे, भ० महामयमत्त गयंद तप ऊपरि, कीधी फिरिअ सवारी रे ॥६॥ भ० उt अन्न नि षटविगय आदि, सरसतणो परिहारी रे, भ० व्रत चोथु चोखं पालेवा, अणओदरि मनधारि रे ॥७॥ भ० बोरकूटनि अडद जे जूना, बाफिल निबल सभावि रे, भ० यापनानि कार्मि पारणडई, साधुओ सोधीनइं लावि रे ॥८॥ भ० जिम जिम तप करइं नीरस लेई, तिम तिम काम संतापइं रे, भ० जिम जिम लि आतापना आकरी, तिम तिम विषय ज व्यापई रे ॥९॥ भ० तव नंदिषेण थओ चिंतातुर, चित्तमां एम विमासई रे, भ० किम राखीसुं शील रूडी परि, सी परि ४४अनंग ए जासि रे ॥१०॥ भ० लहि विरुइ वयरागी पंचसि, रमणी तजी जे नाठो रे, भ० केडिं पडी तेहसिउं करि खटपटि, जूउ जूउ मदन ए माठो रे ॥११॥ भ० न्यानसागर कहि छट्ठी ढालई, सांभलयो सहू कोई रे, भ० । सील राखेवा सो मुनि करस्यइ, विधि भलो सूत्रथी जोई रे ॥१२|| भ० दूहा ॥ नीरस आहारि तप करई, जो न रहि मन ठाम वरतइं काम विकारमां, साधु करइ स्युं ताम ॥१॥ श्री वीर कहिउं सूत्रमां, सांभलि गोअम वात वर(रि) व्रतभंग कर्या थकी, करवो आतमघात ॥२॥ विसभक्खण अणसण गिरि, झंपापात करेह जिम जिम व्रत राखइ मुणी, आराधक कह्यो तेह ॥३॥ [ढाल-७] राग - केदारो । ए मोती मेरो म जीउका प्यारा आयारकी सूरति परनाथ में ऊतारा - ए देशी ॥ एम मनि सूत्रनो न्याय विचारि, नंदिषेण मुनि साहस धारि साधुजी सीलरतननो रागी, जे करई व्रत यतन सोहागी, सोहि हो मुनिवरजी ॥१॥ सा०, आंकणी । ४४. जनम - ब. ।
SR No.520580
Book TitleAnusandhan 2019 10 SrNo 78
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
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