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________________ ओक्टोबर - २०१९ भयरव झंप करेवा सारई, गिरि सिखरि चढिओ तेणि वारइं ॥२॥ सा० करि पचखाण देई त्रणि ताली, जव झंपास दीइ उजमाली ॥३॥ सा० तव आकाश थकी सुरवाणी, कहि सुणि रे सुणि रे गुणखाणि ॥४॥ सा० जो तुं पडिस तुहई महाभाग, नहि थाई तुझ प्राण त्याग ॥५॥ सा० इम सुणी अरहुं परहुं जव निरखइं, चारण श्रमण देखी चित्त हरखइ ।।६।। सा० चारण मुनि नि जई कहई वंदी, नंदिषेण निज आतम नंदि६ ॥७॥ सा० चारण रिषि बोल्या ततखेव, मृत्यु अकालि नथी तुझ हेव ॥८॥ सा० वली विहरिं विचर[इं] महीमंडलि, लबधिनी ऋद्धि जिस्यो आखंडल ॥९॥ सा० दे प्रतिबोध भविक बूझवतो, दुःकर तप करि तनु खेट(द)वतु(तो) ॥१०॥ सा० तो पणि श्रीनंदन संतापई, जिम तप करइ तिम तिम तेह व्यापि ॥११॥ सा० पीड्यो कामे घj कामातुर, तव मुनि तेह थयो चिं[ता]तुर ॥१२॥ सा० कुंदचंद सोना- वासण, निर्मल तेहथी एह जिणसासण ॥१३॥ सा० कलि कलूस रहीत निरलंछण, हूं पापी ते करीश सलंछण ॥१४॥ सा० जिउं जिनसासण मइलो करीजइ, तिउं व्रत राखण मरण आदरीजइ ॥१५॥ सा० टंकु(टुंक) “छिन्न गिरि उपरि जाम, भयरव झंप चढि करि ताम ॥१६॥ सा० मा रे मां गगने कहि देवा, लहिस केवल करिसइं सुर सेवा ॥१७॥ सा० सुभट सिरोमणि साहस धीर, एह छई ताहरु चरम शरीर ॥१८॥ सा० पूरवबद्ध निकाचित भोग, भोगवीनइ आदरजे योग ॥१९॥ सा० चारण श्रमण कहि तेणि अवसरि, चरम सरीरी तुं मरि किणि परि ॥२०॥ सा० एम सुणि श्री जिन वीर कह्नई आवी, ओघो मुहपती आगलि ठावी ॥२१॥ सा० लो प्रभुजी यतीलिंग ए तुमचुं, दीप्यओ काम न रहिउ चित अमचुं ॥२२॥ सा० न्यानसागर कहि सातमी ढालि, धन नर-नारि जे चारित्र पालई ॥२३॥ सा० दूहा ॥ वांदी वीर जिणंदनि, जां(जि)हां नवि जाणई कोइ . कहीइं विहार कर्यो नथी, तेणि देसि गयो सोय ॥१॥ राजध्या(धा)न एक नयरमां, फिरतो फिरतो तेह आहारतणइं अरथिं तदा, गयो गणिकानइं गेह ॥२॥ ४५. मुंनी - अ। ४७. मन दृढ जांणे मेरु जिम निश्चल ॥९॥ सा० - अ ४६. निंदी - ब । ४८. टुंक चढी - क.
SR No.520580
Book TitleAnusandhan 2019 10 SrNo 78
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
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