SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जून - २०१९ जात मात्र उराकासें भमाडी, सुर भाखें वनमांहिजी । कुमर प्रभंजन पांनडांमांहें, राख्यो करमे साहिजी ॥ क० ॥१२॥ साधू बचन सांभली सागरदत्त, दमनकनें दोय वारजी । मारण माड्यो पणि नवि मुक्यौ, हूउ गृहपति सारजी ॥ क० ॥१३॥ विविध रतन मणि-माणिक देखी, ब्राह्मण एक अनाथजी । रतनागरनी सेवा कीधी, डेर्डक लागो हाथजी ॥ क० ॥१४॥ सोमदेव निज भगनी परणी, पिण छांडी ततकालजी । निज माता गणीकासु लुबधो, करम तणे जंजालजी ॥ क० ॥१५॥ अलपकाल व्रत पाली पहुत्तो, पुंडरीक भवपारजी । व्रत विराद्धी चिरकालें जायें, कुंडरीक नरक मझारजी ॥ क० ॥१६॥ एकणि वार गया मयगल वर, चवदेंसें चमालजी (१४४४) । करमवसें तें भीक्षा मागें, जोइ मुंज भुपालजी ॥ क० ॥१७॥ मुनि वचनें ब्राह्मण रंधावें, मंजर मस्तक खीरजी ।। सेठ तनय तेह ज जीमीनें, राजा थाय सधीरजी || क० ॥१८॥ नापेकघरि दासीनो बेटो, जाति हीन कुलमंदजी । ते पाडलि नयरनो स्वामी, नवमो नंद नरींदजी ॥ क० ॥१९॥ यात्रा करण बारें व्रतधारी, श्रावक वीरो नामजी । मारग वाघणि-सिंघ बिलूधो, करम तणा ए कांमजी ॥ क० ॥२०॥ सूर चोवीस सहस नीसवासर, रहता जेणें पासजी । तेह संभूम लवण सायर विचें, वहत गयो नीरासजी ॥ क० ॥२१॥ दुरभागी पुरव भव हुतो, नंदीषेण इण नामजी । स्त्रीवलभ वसुदेव कहांणो, करम तणो ए कामजी ॥ क० ॥२२॥ ऋषभदेव त्रिभुवननो नायक, लीधी नीरुपम दीषजी । वरस लगें आहार न पांम्यो, करम दीयें इम सीखजी ॥ क० ॥२३॥ प्रसनचंदऋषी काउसगमांहि, नरकतणा दल मेलीजी । ततखीण निरमल केवल पांम्यो, करम करें इम केलजी ॥ क० ॥२४॥ १. देडको । २. नापित-हजाम ।
SR No.520579
Book TitleAnusandhan 2019 07 SrNo 77
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy