SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८२ अनुसन्धान-७७ करमबत्तीसी कर्ता : अनन्तसुन्दरजी ॥ ६०|| श्री ज्ञानकुसलजी गणिपरमगुरुभ्यो नमः अथ करमबत्तीसी लिख्यते ॥ अथें ढाल - आदर जीव क्षमागुण आदर ए देसी । करम तणि गति अलख अगोचर, कहो कुंण जाणे सारजी । ज्ञानवसें मुनिसर जांणे, के जांणे किरतारजी || करम० ॥१॥ पूर्व करम लिखत जे सुख-दुःख, जीव लहें नीरधारजी । उद्यम कोडि करिजे तो पिण, न फलें इधक' लिगारजी ॥ क० ॥२॥ एक जनम लग फीरें कुमारा, एकण रें दोय नारजी । एक उदर-भर जगमांहि कहीयें, एक सहस आधारजी ॥ क० ॥३॥ एक रूपें रंभा सम दीसें, दीसें एक कुरूपजी । एक सहुना दास ज कहियें, एक सहुना भूपजी ॥ क० ॥४|| सायर लंघी गयो लंकाइ, पवनपुत्र हणमंतजी । सीता खबर करीने आयो, रांम कछोटो देतजी ॥ क० ॥५॥ वेस्या घरि वसतां रें आवी, तनु दुरगंध अपारजी । दुरगंधा नृपति पटरांणी, थायें करम प्रकारजी ॥ क० ॥६॥ चौसठि सुरपति सेवा सारें, माहावीर भगवंतजी । नीचें कुलें आवी अवतरीया, करम माहाबलवंतजी ॥ क० ॥७॥ रस कुंपी भरवाने काजें, पइठो जोगी जांमजी । भाग्यवसें आकासें वाणी, भरि रांकानें नामजी ॥ क० ॥८॥ द्वारिकादाह दीयो दीपायण, तिहां कृष्णनरेशजी । अरध भरत स्वामी चीत चितें, जइयें पंडव देसजी ॥ क० ॥९॥ नीरवह्यो चंडाल तणें घरि, रह्यो मसांण नरिंदजी । निज सूत खांपण ए तस लीधो, जे राजा हरिचंदजी ॥ क० ॥१०॥ सीता सती सीरोमणी कहियें, जांणे सहु संसारजी ।। तेहनें राम तजी वनवासें, सहुकि वचन संभारजी ॥ क० ॥११॥ १. अधिक।
SR No.520579
Book TitleAnusandhan 2019 07 SrNo 77
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy