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अनुसन्धान-७७
मृगापुत्र पर्लखंड पलासमें, पुरव करम वीसेषजी ।। कडुआ करम विपाक कहीजे, चितें गोयम देखीजी ॥ क० ॥२५॥ ब्रह्मदत्त जोगी उपदेसें, पेठो वीवर मझारजी । तो पीण धन लव लेस न लाधो, कीधा कोड प्रकारजी ॥ क० ॥२६॥ हरीहर ब्रह्मादिक जोगीसर, राजा ने वली रंकजी । बिवध प्रकारें करम वीटंबन, न करें केर नीसंकजी ॥ क० ॥२७॥ करम लिखी सुख संपति लहीयें, अधिक न कीजें सोचजी । । आप कमाया फल पामीजें, अवर न दीजें दोसजी ॥ क० ॥२८॥ इणपर करम विपाक विचारी, छांडो करम कलेसजी । जिम अविचल सवि सुख पामीजे, प्रणमें पाय सुरेसजी ॥ क० ॥२९॥ सोलकलासुं पुरण सू(सुं)दर, जांणी बिवध विचारजी । करम बत्तीसी नीसभर कीधी, धरी संवेग उरपारजी ॥ क० ॥३०॥ श्री तपगछ नायक जग जयवंता, जुगप्रधान वीजेंदेवजी । तास पटोधर दीन दीन सोभे, श्रीवीजेंसिंहमुनीसजी ॥ क० ॥३१॥ अमरसुंदर गुरु सीस पयंपें, अनंतसुंदर सुविचारजी । भणतां गुणतां वली सांभलतां, थायें हरख अपारजी ॥ क० ॥३२॥
इति करमबत्तीसी संपूर्ण ॥
१. मांस-खंड।