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अनुसन्धान-७७
बे संस्कृत पत्रो
- सं. उपा. भुवनचन्द्र
जैन श्वे० श्रमणसङ्घ तथा श्रावकसङ्घनी छेल्ला ३००-४०० वर्षनी गतिविधिस्थितिनी झांखी करावता बे संस्कृत पत्र संकलित करीने अहीं रजू कर्या छे. प्रथम पत्र नागोरी वडतपगच्छना (पार्श्वचंद्रगच्छना) श्रीपूज्य भट्टारक श्रीविवेकचन्द्रसूरि (वि.सं. १८३७मां आचार्य पद) उपर लखायेलो छे. लांबा विज्ञप्तिपत्रना प्रारम्भना श्लोको ज छे. ऊतारो अपूर्ण रह्यो छे. पत्रमा लखनार साधुनी प्रौढ प्रतिभा तरवरी रहे छे.
बीजो पत्र खम्भातथी भट्टारक विद्यासागरसूरि तरफथी मुन्द्रानगरमां चातुर्मास रहेल श्रीवृद्धिसागर गणि ऊपर लखायेलो छे. साधुओ गच्छाधिपतिने क्षमापनापत्र । विज्ञप्तिपत्र लखता, तेमां पर्युषण, चातुर्मास सम्बन्धी वृत्तान्तनिवेदन करता. श्रीपूज्य भट्टारक वलता पत्रमा पोताने त्यांनो वृत्तान्त लखता. पत्र अने तेना उत्तर उत्कृष्ट संस्कृत भाषामां, काव्यमय आलङ्कारिक भाषामां लखाता. प्रस्तुत पत्र आवो ज एक प्रत्युत्तर पत्र छे. पत्रमा संवत्नो उल्लेख नथी, परन्तु पत्र पूरो थया बाद, खाली जगामां, अन्य हस्ताक्षरमां बीजो पत्र छे अने तेमां १७८१नो उल्लेख छे, तेथी आ पत्र एनाथी पूर्वनो (संभवतः १७८०नो) छे एवं तारवी शकाय छे.
श्रमणोनी गुरुभक्ति, संस्कृतभाषा परनुं प्रभुत्व, श्रावकोनी श्रद्धा, चातुर्मास । पर्युषणनी तत्कालीन परिपाटी, श्रमणोनी आन्तरिक व्यवस्था वगेरे तथ्यो आवा पत्रोमांथी सांपडे छे. पर्युषणना वृत्तान्तमां स्वप्नदर्शननी के अन्य उछामणीओनो उल्लेख नथी. बन्ने पत्रो अमारा निजी संग्रहमां छे.
(१)
नमः श्री सरस्वत्यै ॥ स्वस्तिश्रीश्रेणियुक्तो वृषभजिनपतेऽगण्यनैपुण्यपुण्यलावण्यानल्पजल्पप्रवरगुणगणैर्गीयमानः सदानः । ज्ञानध्यानप्रतानः कुमदधरणिभृद्वज्रिवज्राग्रजाग्रत्सामग्योदग्रकाग्रस्तबहुलविलसत्सत्प्रभावप्रभाव ॥१॥
कर्तृ-कर्म-क्रियागुप्तम् । स्रग्धराछन्दः ।