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अनुसन्धान-७६
१७ कडीनी बीजी बारमासीमां जान के पशुओना पोकारनी वात नथी, राजुल गोखमां बेठी छे अने पोताने चोरीने लई गयेला यदुरायने (नेमने) मनावीने, पाछा लई आववा ते पोतानी सखीओने जणावे छे. त्यार बादनी प्रत्येक कडी क्रमशः श्रावणथी शरु करी, मास प्रमाणे कुदरतनी विशिष्टता अने पोतानी विषम परिस्थिति आलेखी, १४ कडी पर्यन्त विरही अवस्थाने वर्णवे छे. १५ अने १६ मी कडीमां तेने अडवाणे पगे चालीने, वालमनुं नाम जपती जपती गिरनार पहोंचती दर्शावी छे. त्यां ते संयम लइने, कर्मनो नाश करी, शिवमन्दिरनी वासी बने छे.
अन्तिम कडीमां रचनाकारनो नामोल्लेख छे. आ कृति वाचक हरिचन्दना शिष्य जिनचन्दे रची छे. बन्ने कृतिनी भाषा राजस्थानी-मारवाडी जणाय छे.
प्रस्तुत कृतिनी ९मी तथा १२मी कडीमां त्रीजं चरण लखवानुं रही गयु जणाय छे. लहियानी भूल थई जणाय छे. १३मी कडीना चोथा चरणमां बे-ओक पदो लखवानां रही गयां छे. मूळ प्रत मळे के आवी अन्य प्रत मळे तो कृति सम्पूर्ण बने.
मध्यकालीन गुजराती साहित्यना बारमासी स्वरूपमा उमेरो करती आ बन्ने कृतिओनुं लिप्यन्तर अहीं प्रस्तुत छे..
॥ दूहा राग - मल्हार || समरु माता सारदा, प्रणमुं गुरुदेव पाय गुण सघलो मुझ ज्ञाननो, विवरो दियो व(ब)ताय ॥१॥ जासु पसाय नेमनी, बारामासी विसेस भणसुं हूं भक्तै करी, मे मीठो उपदेस ॥२॥ जांन सबल सझी यादवे, परणवा राजुल प्रेम उग्रसेन घर उमंगी, पउधार्या प्रभू नेम ॥३॥ सहीय समांणी साथणे, सोल सझी सिणगार जोवै निज प्रीतम भणी, राजुल राजकुमार ॥४॥ तोरण मुख आया तदा, पसुकी सुणी पुकार करुणा करी जिन ईम कहै, ओ संसार असार ॥५॥