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________________ जान्युआरी- २०१९ सेवक जन इम वीनवइ रे, पुन्यइ सुख संसारि... पंडितजी, कहियो० ६ [आंख] (७) (चूनडीनी देसी) प्रीउ संघातइ रंगभरि रमतां, प्रेमि करी लपटाणी रे; माहरू नाह करी जाणंती, प्रीऊडइ नवली आणी रे... नाहलीया आपु मुझ सुख नाहलीया, ए अरथ उकैली दीजइ रे चतुर तणा मन रीझइ रे... नाहलीया० १ वाहला काजि गभा मइ सेवी, घणा दिवस परिमाण रे; नाहलीइ नेटि नेह न जाण्यो, प्रीउडो थयु अजाण रे... नाहलीया०२ सरसी बिठी सरसी ऊठी, कदही विनय न चूकी रे; सरसी सुख भरि सज्या सूती, तु सांमी का मूकी रे... नाहलीया० ३ घणी रमणिसिउं जे हुइ रातु, ते तु प्रेम न जाणइ रे; ते नारीनइ जे वश करइ, सेवक तास वखाणइ रे... नाहलीया० ४ [छाया] (८) ते गिरूउ : ए देशी सामलवरणी नइ नाह्रडली, नारि अपूरव दीठी रे; तेहनु माटी छइ वनवासी, धणी तणइ मुखि बिठी रे... पंडित० १ पंडित कहियो ए हरीआली, जउ हूइ बुधि सारी रे; नहीतरि जाणा जोसी पूछउ, कां रहउ रदि विचारी रे... पंडित० २ पातलीउ नाह नारी सरिसउ, परनइ हाथइ खेलइ रे; नाह देखंता राचइ परसिंउ, तुहइ नाह न मेहलइ रे... पंडित० ३ नगुणासिंउ वलगी रहइ नारी, सुगुण साथइ न बाजइ रे; रगत पीयंती नरणी कहावइ, ए तस ऊपम छाजइ रे... पंडित० ४
SR No.520578
Book TitleAnusandhan 2019 01 SrNo 76
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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