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________________ ८४ ए हरीआली जे कहइ, तेहनी बुद्धि सारी; अवधि देउं मास च्यारनी, कहइयो निरधारी... ए० २ खात्र पाडइ ते कामिनी, नीज नाह बंधावइ; माटी बीजु वली ते करइ, तुहि लाज न आवइ... ए० ३ ते नारी सारीखा वली, म म थायज्यो जाण; सेवक संगति साधुनी, करयो जिनआण...... * ( ६ ) - अनुसन्धान- ७६ (कपूर हुइ सूंदरता नारी अछइ रे, बि पखी दीपइ सार; मोहनगारी सामली रे, सहूनइ करइ उपगार... पंडितजी कहियो एह विचार, वली देउ मास बार, पंडितजी ए देशी) समझइ तस बुद्धि सार, पंडितजी कुण कही इसी नारि, पंडितजी, कहियो० १ पांख अछइ नही पंखिणी रे, नहि तस चांच लगार; पांख हलावि कामिनी रे, नही तस ऊडवा अधिकार... पंडितजी, कहियो० २ आंखि मीची उघाडतां रे, लाख जोयण लगि जाइ; चतुर हुइ ते प्रीछयो रे, परमारथ कहिउ माहि... पंडितजी, कहियो० ३ रुपवती नइ गुणवती रे, ते नारी सुकुमाल; जण जण साथइ प्रीति करंता, को न दीइ तस आल... पंडितजी, कहियो० ४ अन्न पान वस्त्र भूषणां रे, तेहनु न करइ संग; पाणी माइ सदा रहि रे, वहितइ हुइ बिरंग... पंडितजी, कहियो० ५ पुन्य हुइ जेहनइ पाधरूं रे, तेहनइ निरमल नारि; ए० ४ [सोय-दोरो]
SR No.520578
Book TitleAnusandhan 2019 01 SrNo 76
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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