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ए हरीआली जे कहइ, तेहनी बुद्धि सारी; अवधि देउं मास च्यारनी, कहइयो निरधारी... ए० २ खात्र पाडइ ते कामिनी, नीज नाह बंधावइ;
माटी बीजु वली ते करइ, तुहि लाज न आवइ... ए० ३ ते नारी सारीखा वली, म म थायज्यो जाण; सेवक संगति साधुनी, करयो जिनआण......
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( ६ )
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अनुसन्धान- ७६
(कपूर हुइ
सूंदरता नारी अछइ रे, बि पखी दीपइ सार; मोहनगारी सामली रे, सहूनइ करइ उपगार...
पंडितजी कहियो एह विचार, वली देउ मास बार, पंडितजी
ए देशी)
समझइ तस बुद्धि सार, पंडितजी
कुण कही इसी नारि, पंडितजी, कहियो० १
पांख अछइ नही पंखिणी रे, नहि तस चांच लगार; पांख हलावि कामिनी रे,
नही तस ऊडवा अधिकार... पंडितजी, कहियो० २ आंखि मीची उघाडतां रे, लाख जोयण लगि जाइ; चतुर हुइ ते प्रीछयो रे,
परमारथ कहिउ माहि... पंडितजी, कहियो० ३ रुपवती नइ गुणवती रे, ते नारी सुकुमाल; जण जण साथइ प्रीति करंता,
को न दीइ तस आल... पंडितजी, कहियो० ४ अन्न पान वस्त्र भूषणां रे, तेहनु न करइ संग; पाणी माइ सदा रहि रे,
वहितइ हुइ बिरंग... पंडितजी, कहियो० ५
पुन्य हुइ जेहनइ पाधरूं रे, तेहनइ निरमल नारि;
ए० ४ [सोय-दोरो]