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जान्युआरी- २०१९
नीलज नारि नागी थइ, चढी बिसइ सभा मझारि रे; लोक सहूइ जूइ तेहनइ, नवि धरइ लाज लगार रे... एहनउ... २ मूख विण मुंगी रे भामिनी, अवर पाइ बोलावइ रे; प्रीतडी पंडितसिउं करइ, मूरखथी दूरि जावइ रे... एहनउ... ३ मुनिवर तेहनइ आभडइ, संघटउ तुहइ न थाइ रे; केसी कहइ ते कामिनी, देख पाप पुलाइ रे... एहनउ... ४
[चार दांडीनी ठवणी?]
(राग : सारिंग महलार) उज्जल वरणउ नाहलु रे, गोरी सामलि बि नारि; कामिनी न देखइ कंतनइ रे, कंत न देखइ नारि, सुगुण नर, समझइ एह विचार, तस देऊं साबासी सार, वली आपू एकावली हार, मीठडां करूंअ अपार... सगुण० १ नारी विण नर नवि रहइ रे, नर विण न रहइ नारि; छेहडा बंध्या बेहुना रे, पण छइ बालकुंआरि... सगुण० २ नर नारीथी ऊंपना रे, छोरु च्यार नइ साठि; मातपिता देखइ नही, अरध अरध स्या माटि... सगुण० ३ ते नरनारी नवि मरइ रे, जउ जाइ काल अनंत; अरथ कहिउ कांइ एहमां रे, समजइ ते बुधिवंत रे....सगुण० ४ धरम करी जे आदरइ रे, ते नरनारी जेह; सुख संपति ते पामस्यइ रे, सेवक उछव गेह... सगुण० ५
[दिवस अने रात]
(५).
(राग : मलहार) मोहनगारी सामली, एक नाह्नडी नारी; माटी मोटउ केडिइ पडिउ, जोयो रदि विचारी... ए० १