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अनुसन्धान-७६
केसी कहइ कुण कामिनी, गुणवंताजी, जोइ कहियो जांण, बुद्धिवंताजी. ४
[भूख] (२)
(राग : मेवाडउ) चंपक वरणउ रे दीसइ नाहलउ, कंठिइ मोतीनउ हार; नारी पासइ रे सेजि चढी सूइ, पालइ ब्रह्मव्रत भार... १
ए हरीआली रे चतुर विचारयो... बि नारी वचि पडीउ बापडउ, पाछल त्रीजीनूं साल; तांणी बांध्यो रे बंधन आकरइ, नरना कुण हवाल... ए हरीआली... २ अन्न न खाइ पाणी नवि पीइ, पण दूबलउ नवि थाइ; पदमिनी मोहइ रे मोहिउ नाहलु, नारी विण न सुहाइ... ए हरीआली... ३ सुकिण बेहु रे दमोदमि रहइ, नीज प्राणेसर पाशि; केसी बोल[इ] रे कहउ ते दंपती, भाखउ रदि विमाशि... ए हरीआली... ४ ।
[बे आंख अने नाक?]
(धन धन धन्नो अणगार... ए देशी) बंधन च्यार माटी पड्या, नीपनी पदमिनी एक रे; नारी उपरि नारी चढइ, ए कहउ कुण विवेक रे
एहनउ अरथ ते प्रीछयो... १