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जान्युआरी- २०१९
हरियाली
- सं. उपा. भुवनचन्द्र
प्रकीर्ण पत्रोना संग्रहमांथी ७ हरियालीनां पत्रो मळी आव्यां. भण्डारन नाम लखवानुं रही गयुं छे. त्यार पछी नीतिविजय ज्ञानभण्डार - खम्भातमांथी पण ५ हरियालीनी सं. १७०२मां लखायेली प्रत मळी. आ रचनाओ अप्रगट जणाय छे. प्रथम ३ अने १२मी हरियाली कवि केसीकृत छे, बाकीनी 'सेवक'कृत छे. 'सेवक' उपनाम हशे. बन्ने कविओ विशे माहिती मेळवी शकाई नथी. रचना २००-२५० वर्ष जूनी जणाय छे. हरियालीना उकेल ह.प्र.मां न हता, अमे शोधीने आप्या छे.
हरियालीओ जैन कवि-मुनिओनां विद्या-विनोदनी नीपज छे. उपाश्रयोमां पण बौद्धिक आनन्द केवो जामतो हशे तेनो संकेत पण आवी दिमागी कसरत करावनारी कृतिओ आपी जाय छे.
(१)
(राग : रामगिरी) चरण विना ते चिहुं दिशइ, गुणवंताजी, चालइ सहूनइ वाहइ, बुद्धिवंताजी; त्रिण लोक माहलइ कामिनी, गुणवंताजी, कोय नही तस साहइ, बुद्धिवंताजी. अणतेडी ते भामिनी, गुणवंताजी, सहूनइ घरि ते जाइ, बुद्धिवंताजी; धनवंतनइ पीडइ नहीं, गुणवंताजी, साधुनइ पीडा न थाइ, बुद्धिवंताजी. अगिन भय तेहनइ नहीं, गुणवंताजी, पण वाघिण नवि होइ, बुद्धिवंताजी; राम राम ते ऊचरइ, गुणवंताजी, जेहनइ वलगइ सोइ, बुद्धिवंताजी. ते विण काइ न नीपजइ, गुणवंताजी, जगमां तस बंधाण, बुद्धिवंताजी;