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अनुसन्धान-७६
हरियाली तो तेने कहीइं, जेहनइ हियडइ सान; एक पुरुष में जातो दीठो, तेहनइं पूछडीइं त्रण कान. [तीर] नदी किनारे वेल के वेलने पान नहीं, मृग चरी चरी जाय के मृगने मुख नहीं; धनुष-बाण चडाय के धनुषने पणछ नहीं, मारनार सुजाण के (एने) हाथ के पग नहीं. [ ]
गुरु-शिष्य समस्यापूर्ति "चेलाजी बैठो” इति गुरुवाक्यम् । शिष्यो वक्ति प्रत्युत्तरम् -
बैठा ऊठी ऊठी बैठा बैठ-ऊठ जग दीठा,
रावलयोगी भिक्षा मागे रामरसायण मीठा. १ पुनर्गुरुः वक्ति "जायो" शिष्यः प्रत्यु० -
जायो सेई जाय रहेगो जीमें केसा संसा;
विछुरणवेला मरण दुहेला, कहां होयगा वासा. २ पुनर्गुरुर्वक्ति “सोचो" ततः शिष्यः प्र० -
सूता सेई घणा विगूता, जाग्या यांही पाया;
काया हिरणी, काल आहेडी, हम देखत जग खाया. ३ पुनर्गुरुः - "मरो" ततः शि० -
हम ही मरणां तुम ही मरणां, मरणां सब संसारा;
धन धन जती-मुनीसर मरणां, गुरुजी परला ऊतरे पारा. ४ पुनः गुरुः - "कुट्टन" ततः शिष्यः -
कुट्टन होय सो मनकुं कुट्टे, रामरसायण निसिदिन लूंटे; जिस कुट्टनके हिरदै राम,
तस कुट्टनकुं सात सलाम. पुनः गु० "ते घरवारी है" ततः शि० -