SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जान्युआरी- २०१९ घरवारी होय सो घरकी जाणै बाहिर जाती घरमैं आणै; काया [घरका] भंजन करणा, उस योगीकू जरा न मरणां. [ ] प्रहेलिका - सतावीसै सात त्रिण तेरे तेत्रीसै, चोसठ चउदे च्यार पंच पनर छत्रीसै; सोले सहस छपन बार बावन बत्रीसै. नव दस आठ अढार एक एके एकवीसै; ओगणपचास छनूए, एक एकोत्तर अभिभूय, घर पर वैताल कहे, एता रख्या करो तूह. [नक्षत्र, वार, भवन, यक्ष, तेत्रीस क्रोड देवता, योगिनी, विद्या, वेद, पांडव, तिथि, राग, कला, ५६ क्रोड यादव, मेघ, वीर, लक्षण, ग्रह, अवता(?), पर्वत, वनस्पति...] गजविषधर इकनाम मज्झ रकार बिंदसंयुक्तं, वीझी(?) पढमक्खर [रहिया] सो अवरल (?) अम्ह-तुम्हस्स. [नाग, नारंग, रंग] लक्षण विस्व रतन तिथि, सज्जन कहा लिखी बात; ग्रह-नक्षत्र बेह(?) उनमहि, ऊठि जपत है प्रात. [ ] घरमां हाथीओ नाइ-धोई, हाथीने पहिरावू साही, जिम जिम घालिई तिम तिम रोइ, घाल्या पछी साहमुं जोइ. [ ] लंकलपेटण सीतहरण, नहीं रावण, नहीं राम; सहीजसुंदर मांगियो, मोकल देज्यो स्वाम. [कपडो] उर विन खुर, खुर विन तास विन(?) हीयाविहूणो हंस; सब जीवांको जीव है, रोम-चामडी-मंस. [पाणी]
SR No.520578
Book TitleAnusandhan 2019 01 SrNo 76
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy