________________
७४
अनुसन्धान-७६
स्थले जाता जले स्वैरं याति तेन न पूर्यते ।
जलप्रतारणी नित्यं वद सुन्दरि! का त्वसौ ॥ [नौका] गूढा -
जे मध्ये गंगा वसे, जटा विराजे शीश; नेत्र त्रण पण शंभु नहि, ऊंच छतां नहि ईश. [नारियेळ] केवलज्ञानी केवली देखे चौदे राज; जे न देखे केवली, ते में दीर्छ आज. [स्वप्न] नर उपर एक नर चडे, तेह उपर एक नारी; ते परखो तमे पदमणी, पूछे राजकुमारी. [पाणीनी हेल] पशु नहीं पण चार पग, एक वांसो बे शीश; बालक तेहना पेटमां, जाते षंढ कहीश. [घोडियुं] उत्तम कुलथी ऊपनी, करी तातनो घात; पितामहने परणीने, बेटीए जायो तात. [वृष्टि-वर्षा] चंदपिता कहा रहत है, सारंग तीय करि वामु; सो भोरि सभामें आनिके, अबही मिलावू श्याम. [?] एक गाम दोइ वाणिया, दोइका एक नाम; डील सात (?) मुखि (?) साचला, जाणे लखमण-राम. [?] थलि ऊपनी जलमां वसइ, जलचर जीव न खाइ; जीवह कारण बापडी, खणि आवइ खणि जाइ. [नाव] वागडुं छांडी वासि पइर्छ, मूल विचि सुं पेढुं; पाणी पीइ ढूंढण खाई, दीस ऊगति भूखिउं थाइ. [मूसल] ऊजल वजल जेजल मेहा, मोरइ प्रीय आणी आप्या नेहा; मोरे प्रिय मांग्या तेहा, जंबूद्वीप मांहि नथी एहा. [करहा] आदि अक्षर विण जग जीवाडइ, मध्य अक्षर विण जग संहारे; अन्त्य अक्षर विण सवि कहि मीठउं, सखी में तुज नयणे दीठउं.
[काजल] हरिवदनी हरिलोचनी, हरिलंकी हरिगात; हरि ऊपरि हरको लीये, हरफरसनको यात. [ ]