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जान्युआरी- २०१९
दधिसुत आली बदन पर, सोभासू लहकंत; मानो - - सकंदर, पंथा मनह करत. [] गिरिसुतापति दीकरी, ते सुत वेरी तास; जो जाण तो जाणजो, माहरो छे थे पास. [ ] एको सजन में कीओ, नवरंग वाडी माहे; देख्यो पण चाख्यो नही, होंस रही मन माहे. [ ] ऊभो नर निद्रा करे, झाकळ-तडको खाय; जेने मस्तक मोती नीपजे, खा तूं मोरी माय. [जुवारनो ढूंडो] चार वेतनुं पूतलं, मुख लोढाना दंत, नारी साथे नित रमे, कहो विमासी कंत. [सांबेलुं] दिसि दूणी रसखंडजुत, बाण मिलावो सोई; तिणमैं हमकू राखियो, कृपा रावरी होई. [ ] इन्द्र आसण नासिका, तासु तणी अनुहारि; तसु भख मेरे प्राहुणो, आवागमण निवारि. [ ] अजासुतरिपु पाउं नही, बासुत न सुहाइ; ता कारण धन दूबली, जागत रैण विहाइ. [ ] करि शृंगार कामनि चली, सारंगसुत ले हत्थ; जलसुतभख वैरी भया, सव शृंगार अकयत्थ. [ ] नर ऊपर नर चढे, नर ऊपरि चढे नारी; नारिइं नर फेरविउ, कहो भोज विचारी. [गोफण] एक पुरुषनी असंभम वात, नारी तेहने लई जाई भात; न सकइ चावी न सकई गली, भात लइ जाय पाछी वली.
[ऊखल (खांडणी)] एक पुरुषनी असंभम वात, वांसे लाकड चढ्यां सात; दीसे जीवे रातें मरे, ते पुरुष में दीठो परे. (झांपो) एक नारी वनगहनि ऊपन्नी, खाइ पीइ सूई निरन्नी; परोपकार कारणि आप छेदावइ, मूरख सरसी गोठि न भावइ.
[लेखण-कलम]