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________________ ७१ जान्युआरी- २०१९ गढा-प्रहेलिका-समस्या-प्रहेलिका-हरियाली - ५ - सं. उपा. भुवनचन्द्र समस्या प्रकारनां काव्यो लोकप्रिय तो छे ज, कविप्रिय पण छे ज. महाकविओए पण समस्या तथा समस्यापूर्ति जेवा प्रकारो पर कलम चलावी छे. समस्याने मळतो आवतो एक काव्यप्रकार छ – कूटकाव्य. व्याकरण अने शब्दकोशना प्रखर ज्ञानने प्रदर्शित करवानो अवसर एमां पूरो मळे, साथे सामे पक्षे श्रोता-वाचकना ज्ञानने आह्वान पण ए द्वारा आपी शकाय. बौद्धिक व्यायाम अने बौद्धिक आनन्द पण एजें एक जमापासुं गणाय. चित्रकाव्य माटे पण आम कही शकाय. महाकाव्योमा एकाद सर्ग आवा कूटकाव्य / चित्रकाव्यनो रचवानी एक परिपाटी ऊभी थई गई हती. परवर्ती काळे अपभ्रंश अने देश्य भाषाओना चरिउ, प्रबन्ध अने रासा जेवी कृतिओमां पण प्रहेलिका अने समस्याओने स्थान अपातुं रह्यु. लोककविओए तो आ प्रकारने खूब चगाव्यो छे. कूटकाव्य अने चित्रकाव्य विद्वद्भोग्य छे, ज्यारे समस्या / प्रहेलिकामा सामान्यबुद्धि-सामान्यज्ञान अने कल्पनाशक्तिने कामे लगाडवानी थाय. ह.लि. ग्रन्थालयोनी प्रकीर्ण पत्रोनी पोथीओमां विखराएली आवी समस्यागूढा-प्रहेलिकानो एक संचय अहीं प्रस्तुत छे. प्रहेलिका - अपूर्वोऽयं मया दृष्टः, कान्ते कमललोचने । सौमध्ये यदि जानासि, भवामि तव किंकरः ॥ [ ] काहमस्मि गुहा वक्ति प्रश्नेऽमुष्मिन् किमुत्तरम् । कथमुक्तं न जानासि कदर्थयसि किं सखे! ॥ [ ] पण्डितस्य सदापायं संसारपरिवर्धने । जिनेन्द्रवचने यस्य तस्य जन्म निरर्थकम् ॥ [ ] लावण्यं क्व नु योषितां नभसि के संचारमातन्वते । केषामुच्चतरा भवन्ति निनदाः कस्यां शशी शोभते ।
SR No.520578
Book TitleAnusandhan 2019 01 SrNo 76
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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