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________________ ७० अनुसन्धान-७६ (२) (राग : धन्यासी) चेतउ ओक पुरुष दोइ नारी रे, मई पेखी पुहवी मंजारी; ते तउ नरि नर सरसी नाथी रे, दोइ चालइ सरसी साथी. १ कहु कहु हरियाली सारी रे, कुण पुरुष कवण ते नारी; दोइ सउकि समाणी दीठी रे, ते तउ कलह करती मीठी. २ सिर फूमतडी फुरकावइ रे, नाचती अवर नचावइ; जव संपइ थाइ सोई रे, तव नयणि न जोवइ कोइ. ३ गंगाजल सरिखी गोरी रे, बिहुं वसवा ओक ज ओरी; ते जाण सरिसीं गोठिं रे, रस अमीय निज होठिं. ४ ओ तु लाख कोडि लखवारी रे, पुत्र प्रसवइ बालकुंयारी, बटकंती लाड गहिली रे, बिहुं सरखी छई साहेली; लावण्य समय कहइ सोइ रे, लहु जाण होइ ते जोइ. ५ (बे चरण खूटे छे) [ ? ] (प्रकीर्ण पत्र) C/o. जैन देरासर नानी खाखर-३७०४३५. जि. कच्छ * * *
SR No.520578
Book TitleAnusandhan 2019 01 SrNo 76
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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