SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसन्धान-७६ कवण डाहउ सदा आपणउ द्यइ नही, जीपिवउ कवण संसारि साचउ सही; धर्मनी गोठि कहि मूरख स्यउं ग्रहइ, जगत्रना जीवनी उपमा कुण लहइ. २ वाणियउ भमत व्यापारि वंछइ किस्यउं, रायनइ रिद्धिनइ वृद्धि आपइ किस्यउं; जीवनउ घातक जीवनउं स्यउं हणइ, जीव उपगारनइ हेति गुरु स्यउं भणइ. ३ रवि तणउ क्षेत्र स्यउं विष्णु-आयुध किस्यउं, जीवना वृंद जलमांहि बहु जल किस्यउं; सुरतणउ वास जे तासु स्यउं भाखियइ, खीरनउ सार स्यउं जाणि जगि राखियइ. ४ वणसइ नीपनउ मधुर सुर कुण करइ, सत्रुनइ जीपिवा किसउं एकठ सरइ; हरि तणी घरणी कुण धरणी मंडल कही, एहनउ भाव डाहउ कहउ को लही. ५ ओली इकवीस बि-बि अक्षर मंडियइ, तेहनउ आगिलउ अक्षर छंडियइ; प्रथम अक्षरि लहउ नाम जगि जेहनउ, तेहनइ समरणि पाप क्षय देहनउ. निरमल वाणी भवीयण जाणी सेवकनी तुम्हि मनि धरउ, वसु अंबर कलसमि अहनिसि नमि नमी लीलई भवसायर तरउ. इति वीतराग स्तवन उकेल : १. नाग ६. गल ११. णीति १६. तिमि २१. उमा २. गर्व ७. रिपु १२. प्राण १७. नाक ३. उरि ८. छल १३. साता १८. थर ४. रिखि ९. जल १४. दिन १९. वंश ५. नग १०. लाभ १५. संख २०. दल
SR No.520578
Book TitleAnusandhan 2019 01 SrNo 76
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy