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________________ अनुसन्धान-७६ शीवसूत माता नामके, अक्षर चार धरेय; मध्यको अक्षर छोडके, सो तूम हमको देय. [पा(र)वती] धरम तणो जे सार छे, उपरांठो धरजो; परदेशां जावो जरां, थें म्हानें करजो. [याद] आद दहे अंत दहे, मध्य रहे इण मांय; तुम दरसन बीन होत है, तूम दरसन ते जात. [दरद] गोर शीखरो नीपजे, उर मंडन जे होय; सो तो कांइ न साधीयो, जिम जीवित सो कोय. [?] हाल हालवो भूइ पातली, लीखनहार सुजाण; हाथै वावे मुखे लूणे, तेना करे वखाण. [अक्षर] चंचल रुख अनेक फल, फल फल जूदा नाम; तोड्या पछे पाकसी, कहो उन रुख को नाम. [चाकडो, कुंभ] बिन पगल्या परवत चढे, बिन दांतां खड खाय; हुं तूने पूर्छ हे सखी, ए कीस्यो जानवर जाय. [अग्नि] समुद्र कांठे नीपजे, बीन माली फल होय; छत्तीसांको सायबो, सखी पारे होय तो जोय. [लूण] जल बिन वधे वेलडी, जल वधे कुमलाय; जो जल नेडो करे, जडा मूलसुं जाय. [तृषा] गगन सिखा मारीए, परदेशां मेले भेट; वाणीया ब्राह्मण खावे कालजो, इणको संसो देवे मेट. [केरी] आठ पाव दोय पेट हो, मोरा उपर पूछ; इण गूढानो अरथ कहो, नहिंतर केने राखो मूंछ. [तराजू] एकने पग एक हे, एकने पग चार; सारो जगतनो ढांकणौ, पंडित करो विचार. [कपास, झींडQ] शाम वदन मूख मोर, रहे कुंजवन मांय; माथे वांको मूगट है, वो श्रीकृष्ण नाय. [वेंगन] मूख काली अंग उजली, सुंदर बहु सरुप; ओढन पीली पामरी, माथे नहि केस अनुप. [कलम]
SR No.520578
Book TitleAnusandhan 2019 01 SrNo 76
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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