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जान्युआरी- २०१९
एक नारी नवरंगी, नव नाडा लटकावे; मरदा आगल बाजी खेले, वाही नार केवावे. [तांकडी] बालपने सबके मन भावे, बडा भया कच्छू काम न आवे; कह दीया उसी का नाम, कहो अरथ कै छोडो गाम. [दीया] पथर सुतकी पूतली, वन सुतको घरवास; जे जीयारे मन वसे, ते तीयारे पास. [तरवार] नव लख जाया नव लख पेट, नव लख रमे वडला हेट: चींतवू ओर जणूं, काल पडे जद केता करूं. [तीड] सरवर भरियो खूब जल, सुंदर बेठी पार; सरवर सूको सुंदर गइ, सुरता करो विचार. [दीवो] नानको नगर, फूल को फगर; सुपारीयारो सुकाल, पानरो पड्यो दुकाल. [केरां] धुर कारतीक फागण बीच, जलरो लीजे छेह; पीयू पधारो परदेशमें, मोकल दीजे तेह. [कागल] अणी तीखी मूख वंकडा, सूखा पंख जीसा; पीयू पधारो परदेशमें, लाइज्यो आप इसा. [पाननुं बीडूं] सुको लकडो हे सखी!, में फल लागो दीठ; खावे तो जीवे नहि, जीवे तो नीठ नीठ. [बरछी] चीहूं नारी नर नीपजे, चीहूं नरे नारी होय; हे नर होवे पाधरो, गंज न सके कोय. [दौत?] पांच पगे हाथी चले, पथरवरणी काया; इण गाथानो अरथ सुणायने, पग उपाडो भाया. [काचबो] एक नारी नवरंगी चंगी, पहेरे नवरंग साडी; नाक फाडन फूली घाली, चारे चंग उघाडी. [सोय] अरध नाम दरबार को, वर कागद को तात; सो तूम हमकू दीजीये, सो होवे दीनानाथ. [दरसन] राधावरके कर वसे, अक्षर पंच लखसोय; आदको अक्षर छोडके, बचे सो हम कू देय. [सु-दरसन]