________________
जान्युआरी- २०१९ गूढा-प्रहेलिका-समस्या-हरियाली - ४
- सं. उपा. भुवनचन्द्र
जूना जमानामां हाथपोथी-नोंधपोथी (डायरी) जेवं हतुं नहि; रसिकजन के विद्वानोने जे नोंधी राखवू होय ते छूटां (प्रकीर्ण) पत्र, गुटका, नानी-नानी चबरखी वगेरेमां अने क्यारेक तो अन्य प्रतना अंते खाली जग्या होय त्यां लखी राखता. स्तवन, सज्झाय, दूहा, स्तोत्र वगेरे रचनाओ सर्वप्रथम कागळना टूकडाओमां लखाती. आवा टूकडा पण प्रकीर्णपत्रोनी पोथीओमां सचवाता रह्या छे. आवी रचनाओनी प्रतिलिपि पण घणीवार थवा नथी पामती. तेथी ए रचनानी एक मात्र प्रति ज बची होय एवं बने. उत्तम कक्षानां स्तोत्रो वगेरेनी एक ज प्रति मळी होय एवं जोवा मळे. आम प्रकीर्णपत्र, गुटका वगेरे अप्रगट रचनाओनो मोटो स्रोत बनी रहे छे.
गूढा, हरियाली जेवी रचनाओ मुख्यत्वे आ स्रोतमांथी मळे छे. क्यारेक आवी रचनाओ, २-४ पत्रोनुं संकलन पण मळी आवे. आवा स्रोतोमांथी एकत्र करेल गूढा आदिनुं एक चयन अहीं सम्पादित करीने मूक्युं छे.
प्रहेलिका - षोडश नयनसरोजा-न्यष्टौ मुखपङ्कजानि पादौ द्वौ । पञ्चदश यस्य जिह्वा जीवद्वयमस्तु वः सिद्ध्यै ॥ [ कीस पयं अवरोलं गामं किंकारणेण धणइड्ढे । सुहडो कीस न गिणइ खग्गं समरंगणे पडिउं ॥ [करहीनं] अंब-जंब-अंबिलीए लगइ, करणे केले द्राख न लगइ । लग लग कहतां किमइ न लगइ, मा मा कहतां घणेरु लगइ ॥ [होठ] जलसुय तस सुय तास सुय, तस वल्लही म मंडि । पिय अक्खइ धण अग्गलि, कइ छंडिसि कइ छंडि ॥ [वेढि (वेड,कलह)] अहि-नउलाण य नेहो, जो नेहो मूसय-बिडालस्स । दीव-पयंगयनेहो, सो नेहो अम्ह तुम्हस्स ॥ [अहि-नकुल = सर्प अने महादेव; मूषक-बिडाल = उंदर अने
गणेश; दीव-पयंग = द्वीप अने सूर्य]