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अनुसन्धान-७६
धर्मइं दुकृत दहइ, इंद्रादिक पद लहइ, धर्मे शिवसुख [...] कहंत देव रे ॥भणइ० ॥३२॥ महाणंद सुखकंदरूप छंद जाणीइ, श्रीरुपजीवगणि, कुंयर श्रीमल्लमुनि, रतनसीह यशधणी, त्रिभुवन मानीइ । विमल [शा]सन जास, मुनि श्रीगंगदास, हस्त दीख्यत तास, बत्रीसी वखाणीइ, बाण-वसु-रस-चंद [१६८५], दीवाली मंगलवृंद, अहम्मदावादेंद, रंग मनि आणीइ ॥ भणइ० ॥३३॥
॥ इति श्री छंद सम्पूर्णम् ॥
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कडी १ मूर = मूळ २ संथांण = संस्थान ३ सुमति = समिति ५ दुतर = दुस्तर ६ कोत = केम ९ उदमद = उन्मत्तना अर्थमां १४ पारपति = पारेवो
अघरा शब्दो
कडी १५ निराताल = नराताळ / सरासर १८ वीसी पइंत्रीस = ७०० २५ विठ = वंठेल २६ खणिखोह = क्षोभ २७ रुल्ल = रोळवू २७ दोरधूप = दोडधाम
C/o. शशीकान्त दोशी A-1005, शत्रुजय टावर अडाजण पाटिया
सूरत-७