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________________ जान्युआरी- २०१९ देखो धुं सुमुख जन्नि, प्रतिलाभ्यो महामुनि, कुमर सुबाहु तिन्न, रूपको निधान रे ॥भ० ॥२८॥ बडो व्रत व्रतमांहि शीलवत जांण रे, सागर आगरमांहि, सयंभु उदधिमांहि, वडो दान दानमांहि, अभय जुं दांन रे । चंद्र ग्रह-गणमांहि, ब्रह्मलोक कल्पमाहि, वडो ग्यांन ज्ञानमांहि, केवल युं ज्ञान रे । अरिहंत मुनिमांहि, मनोरम्य गिरांमांहि, वडो ध्यान ध्यानमांहि, शुकल युं ध्यान रे || भ० ॥२९॥ भवकोडि-कृतकर्म तपहीतइं टालीइ, तपथई वंछितफल, होत जीव निरमल, तप दावानल, कर्मवन बालीइ । देखु धन्नो अणगार, दुक्खर तपकार, छोडिकें बत्रीस नारि, जेन व्रत पालीइ । सागर तेत्रीस वर, हूउ अनुत्तरसुर, जाकि गुण रूप जल, आतम पखालीइ ॥ भ० ॥३०॥ भावहीतई होत सिद्धि भाव हइ प्रधान रे, बहुविध व्रत लीध, तप करि दांन दीध, भाव विना नांहि सिद्ध, होत फलहांनि रे । शुभ भावइ भावि जेह, भवनिधि तरह तेह, पाउ युं मुगति गेह, भरत राजान रे । मरुदेवी मात धन्न, दुक्खर तप विण, शिवपद पायो जिण, ध्याइ शुभ ध्यान रे ॥ भ० ॥३१॥ धर्म इह मंगल-मूल धर्महीतुं सेव रे, धर्म हइ कल्पवृक्ष, देखउ जातइ परतक्ष, भोगवइ हइ लोक लक्ष, सुख नित्यमेव रे । धर्म कइ उत्तम फल, जाति कुल रूप बल, विकट-संकट टलें, जात ततखेव रे ।
SR No.520578
Book TitleAnusandhan 2019 01 SrNo 76
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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