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जान्युआरी- २०१९
बालचन्दमुनि-कृत शीखामणबत्रीशीछन्द
- सं. साध्वी समयप्रज्ञाश्री व्रजभाषा अने मनहरछन्दमां रचायेली आ “शिखामणबत्रीशी" नामक कृतिमां मानवभवने सफळ करे तेवा लगभग २०थी वधु मुद्दे शिखामण अपाई छे.
'शिखामण' ओ जो के, दुनियानी ओक ओवी चीज छे के जे विना मूल्ये मळती होवा छतां ते लेवी/सांभळवी प्रायः नापसंद होय छे. ओटले, आम जोइओ तो कोइपण कर्ता माटे 'शिखामण' - ओ पडकाररूप विषय गणाय. छतां, अहीं कविले आ कृति माटे ज विषय पसंद को अने अन्य कृतिओनी जेम आ पण लोकभोग्य बने ते रीते आनी रचना करी छे अ आनन्दनी वात छे.
अहीं देव-गुरु-धर्मना स्वरूपवर्णनथी प्रारम्भीने मानवभवनी दुर्लभताने समजावी छे. कल्पवृक्ष, चिन्तामणीरत्न व. उपमाओथी अने ओळे न गुमाववानी वात करी छे. आनुषंगिकपणे गर्भावस्था, वृद्धावस्था, आयुष्यनी अस्थिरता, संसारनी निःसारता जेवी बाबतोने वणी लीधी छे. संसारनां पांच मुख्य पापो हिंसा, जूठ, अस्तेय, अब्रह्म ने परिग्रहने त्यजवानुं तेम ज तेना प्रतिपक्षी अभयदान, सत्य व. पांच गुणोने जीवनमा आदरवार्नु जणाव्युं छे. एवी ज रीते क्रोधादि ४ कषायोने छंडवानुं समजावी छेल्ले दान, शील, तप, भावरूप धर्मनो प्रभाव/उपादेयता वर्णवीने पोतानी वात पूर्ण करी छे.
प्रथम अने अन्तिम कडीना उल्लेख मुजब आ कृतिनी रचना संवत १६८५मां अमदावाद नगरे मुनिश्री गंगदासजीना शिष्य मुनि बालचन्द द्वारा थई छे. आ 'शिखामणबत्रीशी' वाचकोने/तमने पसंद आवशे. केम के, कविले आमां "ट्रंकुं ने टच" वाळी शैली अपनावी छे. वली, घणे ठेकाणे ओ वातोने पुष्ट करतां जाणीतां दृष्टान्तोनुं पण निर्देशन कर्यु छे.