SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जान्युआरी- २०१९ स्तुतिपद्यो द्वारा कर्यो छे. त्यार पछीना त्रीजा पद्यमां कविए प्रभु वीरनी शिष्यसन्ततिनुं वर्णन करी, चोथा-पांचमा पद्यमां आ. श्रीजगच्चन्द्रसूरिजीनी परम्पराना आ. श्रीहेमविमलसूरि तथा आ. श्रीआणन्दविमलसूरिजीना क्रियोद्धारनी विगतो रजू करी छे. हवे पछीनां बे पद्यो पू.आ. श्रीविजयदानसूरिजीना शिष्य आ. श्रीविजयहीरसूरिजीनां प्रशंसाकाव्यो छे. बादशाह अकबरना निमन्त्रणथी पू.आ. श्रीविजयहीरविजयसूरिजी फतेपुरसिक्री पधार्या त्यारे तेमनाथी प्रभावित थई सम्राट अकबरे करेला सत्कार्योनी नोंधो ८ थी १२ पद्योमा छे तो १३मा पद्यमां सूरिजी वडे प्रतिबोधित लोंकागच्छीय ऋषि मेघजीना शिष्यत्वनी वात गुंथाई छे. त्यार पछीनां ९ पद्यो विजयसेनसूरिजीना गुणवैभवने वर्णवता गुरुस्तुतिनां अन्तिम पद्यो छे. पछीनां ६ पद्योमा कविए गंधारना श्रावक परीख राजीया तथा वाजीयानी वंशावलीनुं तेम ज गंधार छोडी खम्भात स्थिर थतां तेमनी वधती सौभाग्यलक्ष्मीनुं स्वरूप वर्णव्युं छे. धर्मकार्योमां तत्पर ते बन्ने श्रावको वडे कराएलां सत्कार्योनी वर्णना माटे कवि त्यार पछीनां २८ पद्यो फाळवे छे. आ वर्णनमा मुख्यत्वे वि.सं. १६४४मां आ. श्रीविजयसेनसूरिजीना वरदहस्ते ४१ आंगलनी श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथ प्रभुनी तेम ज वीर प्रभुनी प्रतिमा प्रतिष्ठित थयानी विगतो आलेखाई छे. तो ते सिवाय जिनालयनी सुन्दरताने वधारतां अन्य २५ जिनबिम्बो, १२ स्थम्भो, ६ द्वारो, ७ नानी देवकुलिकाओ, २ द्वारपाळनी मूर्तिओनी वर्णना पण त्यां वर्णवाई छे. ते ज रीते जिनालयमा २५ पगथियां भूगर्भमां ऊतरतां भोयरामा ३७ अंगुलप्रमाण आदिनाथ प्रभुना, ३३ अंगुलप्रमाण महावीरस्वामीजीना तथा २७ अंगुलप्रमाण शान्तिनाथ प्रभुना जिनबिम्बनी तेम ज त्यांनी शोभा वधारती नानी नानी २६ देवकुलिकाओ, गणेश (पार्श्वयक्ष?), २ द्वारपाळ, ४ चामरधारी, १० हाथी अने ८ सिंहाकृतिओनी पण अहीं नोंध कराई छे. काव्यमा प्रान्ते कविए पोतानी गुरुपरम्पराना, शिलालेख पर लेख लखी आपनारना तेम ज कोतरी आपनारना नामोल्लेखपूर्वक ते शिलालेख- समापन कर्यु छे. उपरोक्त लेखमा उल्लेखित संवत् आदिना आधारे ज जिनविजयजीए ते बन्ने चैत्योने जुदां कल्प्यां छे. जो आपणे तेमनी दृष्टिए विचारीए तो शिलालेखना ३९मा पद्यमां कविए "व्यधायि चिन्तामणिपार्श्वचैत्य" ए पदथी, तेम ज कृतिना अन्तमा लिखित "प. वाजिया प. राजिया नामसहोदरनिर्मापित-श्रीचिन्तामणिपार्श्वनाथजिनपुङ्गवप्रासादप्रशस्ति" ए वाक्य द्वारा नवा जिनालयना निर्माणनो निर्देश कर्यो होवानुं जणाय छे. परन्तु अहीं नवं एटले तद्दन नवु एवो अर्थ करवानो छे के नवं
SR No.520578
Book TitleAnusandhan 2019 01 SrNo 76
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy