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अनुसन्धान-७६
स्तम्भतीर्थसत्क राजीआ-वाजीआ श्रावकनां सुकृतोतुं वर्णन करती भाषा-रचना (अपूर्ण)
- सं. गणि सुयशचन्द्रविजय
मुनि सुजसचन्द्रविजय पुरातत्त्वविद् जिनविजयजीए घणां वर्षों पूर्वे "प्राचीन जैन लेखसंग्रह" पुस्तकना बे भागनुं सम्पादन कर्यु हतुं. ते पुस्तकना बीजा भागमां तेमणे खम्भातना चिन्तामणि पार्श्वनाथ प्रभुना प्रासादना बे शिलालेखोने प्रकाशित कर्या हता. तेमांनो पहेलो शिलालेख काळा पाषाणपट्ट पर कोतराएलो हतो, जेमां मुख्यत्वे वि.सं. ११६५मां खम्भातमां श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथ प्रभुना जिनालयना निर्माणनी तेम ज वि.सं. १३५२मां ते ज जिनालयना जीर्णोद्धारनी विगतो नोंधायेली मळे छे. ज्यारे बीजो शिलालेख पू. प्र. कान्तिविजयजी म.ना हस्तलिखित प्रतसंग्रहमांथी तेमने मळ्यो जेमा चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालयनी प्रतिष्ठा वि.सं. १६४४मां राजीया तथा वाजीया - ए बे श्रावकोए कर्यानी नोंध मळे छे. जिनविजयजी ए लेखनी विगत त्यां नीचे मुजब टांके छ :
"मूळ लेख क्यां आगळ आवेलो छे ते कांइ ए प्रतिमां लखेलुं नथी. परन्तु लेखमां आपेला वर्णन उपरथी समजी शकाय छे के ते खम्भातना चिन्तामणि पार्श्वनाथना मन्दिरनो होवो जोइए. आ लेखनी उपरनो (पहेलो) लेख पण चिन्तामणि पार्श्वनाथना मन्दिरमा ज आवेलो छे. परन्तु ते तो आना (बीजा लेख) करतां बहु जूनो जणाय छे. तेथी जणाय छे के आ (बीजा) लेखमां जणावेलुं चिन्तामणि पार्श्वनाथ- मन्दिर उपरना (पहेला) लेखमां सूचवेला मन्दिर करता जू, होवू जोइए. आ (बीजा) लेखमांनी हकीकत प्रमाणे तो स्पष्ट जणाय छे के ए मन्दिर नवीन ज बांधवामां आव्युं हतुं." आम जिनविजयजीना मत मुजब ते बन्ने शिलालेखो बे जुदा जुदा जिनालयना होवानुं स्पष्ट थाय छे. आपणे अहीं ते अंगे विचार करता पूर्वे तो बीजा शिलालेखनो सार जोईशुं. शिलालेख-सार :
कविए काव्यनो प्रारम्भ प्रभु पार्श्वनाथ तेम ज महावीरस्वामी भगवाननां नोंध : हाथपोथी पर "श्रीहीरसूरीश्वरजी महाराजनां धर्मकृत्योर्नु वर्णन" एवं शीर्षक जोवा मळे
छे. परन्तु कृति जोतां उपरनुं शीर्षक बांधेल छे.