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________________ अनुसन्धान-७६ मधुकर तणी परि प्रेम मनि धरि चरण-कमलई लागीइ, कहइ श्रीब्रह्म रंगिइं अचल संगई सदा सेवा मागीई. १६ ॥ इति श्रीस्तंभनकपार्श्वनाथस्तवनम् ॥ (ला.द. विद्यामन्दिर - १२२१) १२. श्रीसौभाग्यसूरि-शिष्य-रचित स्थम्भन-पार्श्व-स्तवन हां रे प्रभु वामा-नंदन जग ज्यो, तुं छे अनोपम दीनदयाल, थंभण पासजी; हां रे प्रभु-मुखडं तेजें दीपतुं, जांणे पुनम-चंद विसाल. १ थं० हां रे विकसित पंकज पांखडी, सोहे आंखडी अतीहें रसाल; हां रे तुझ नयणे हलपती तणा, तरे पाषाण जलधी मझार. २ हां रे अभयदेवसूरिंदना, तुझ नयणे (न्हवणे) नाठा रोग; हां रे ज्योगेंद्रे रस-सिद्धि करी, पांम्यो नीत-नवला संयोग. ३ हां रे अंतरयामी मनतणा, तुझ महिमा मेरु-समान; हां रे दिलभर नेक नीहालीयें, लहीइं त्रण-भुवन-सनमान. ४ हां रे प्रभु-दरीसण-सुखडी चाखीनें, मूझ हेल पडी जिनराज; हां रे पूरण सुख पांम्या वीना, हवें पलक न छोडुं पाय. ५ हां रे तुझ सेवा भणी माहरें, कांई रढ लागी छे जोय; । हां रे हवे मुझ सम त्रिण जगत में, अधिको नही सुखीयो कोय. ६ हां रे भोली भगते रीझवू, नीरवहेवो सुगुण-सनेह; हां रे सौभाग्यसूरीचा सीसनें; प्रगटें सूख आतमगेह. ७ ॥ इति स्थंभनपार्श्वजिनस्तवनं संपूर्णम् ॥ "OOOOOOOOOOO १३. श्रीकल्याणविजय-शिष्य-रचित पोसीना-पार्श्वनाथ-छन्द सरसति समरी कवि-जन-गुरुणी, वर-विद्या-रयण-रोहण-धरणी; पोसिणापुर वर पास तणी, गाउं कीरत महिमा य घणी. १
SR No.520578
Book TitleAnusandhan 2019 01 SrNo 76
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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