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जान्युआरी- २०१९
॥ ढाल - अरणक माता इम भणि, राग सिंधुओ गोडी ॥ द्यइ धइ जिन-पद सदा, पहु! मोह अलाजो अपार रे; तु करुणा-रस-सायरु, नागरु भव-जल-तार रे. २४ तुं मेरे जिअको आधारइ, धइ द्यइ दरिशण आपणु... त्रिभवन माहि अमारिनो, पडह वजडावा काजि रे; मारि-शब्द निवारवा, राजइ त्रिभुवन-राजा. २५ श्री जिन पास न्हवणि करी, जीवी यादव-कोडि रे; सेढी-तडि रस सीध्धलो, कीधली कनक-कोडि रे. २६ शिव-सासन मद मोडीउ, तूत शिध(व)लिंग शतखंड रे; सिद्धसेनि तुम्ह स्तुति-बलई, बुझव्यो राय प्रचंड रे. २७ भद्रब(बा)हु श्रुत-केवली, मारि-निवारण-हार रे; उवसगहर-स्तवनि करी, कीधो जग-उपगार रे. २८ अभयदेवसूरी तणो, रोग-विदारण-हार रे; थंभण पासजी राजीउ, ए प्रभु त्रिजग़-आद्ध(धा)र रे. २९ तुं शरणागत-पंजरु, तुं हित-कर निज तात रे; निज बालकनइ पालवा, तु छइ त्रिभुवन-मात रे. ३० तुम्ह नाम-मंत्र-चिन्तामणि, जपता जयजयकार रे; रिद्धि-वृद्धि-सुख-संपदा, पामइ राज उदार रे. ३१
॥ ढाल-फागनी, राग केदारु ॥ जय प्रभु महिमा-सागर, नागर जगह-शृंगार; त्रिहु भुवने ताहरूं, राज जउ उदार. ३२ जय जगव्यापी थापी, प्रतिमा गुणह भंडार; विविध नामि करी दीपती, त्रिभुवन-जन-आधार. ३३ खंभ-नयर-मुख-मंडण, थंभण पास जिणिद; जीराउल जग-मंडण, जपता परमाणंद. ३४ अमि अमिअझरो प्रभु, विघ्नहरो चिन्तामणि पास; नवखंड नवपल्लव प्रभु, पूरइं सब ज आस. ३५ संख(खे)श्वर प्रभु लोडण, खातो पंचासर पास; कलिकुंड अंतरीक कोको, वरकाण गोडी सास. ३६