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________________ अनुसन्धान-७६ कामण मोहण कडुल सवे, दुष्ट मंत-तंतह योग तु; भय ईति सवे दुरित टलइ ओ, तुम्ह नामि लहइ भोग तु. १३ सुखसंपदा बहु गजघटा ए, तुरग-रथ पायक कोडि तु सुर-नर राय खेव करइ ए, तुम्ह नामि कर जोडि तु. १४ ॥ ढाल - राग सोरठी, जिणिंद मुणिंदर ए ढाल ॥ वामानंद रे सुखसेंद रे, मुझ सुख-सागर-चंद कर्म-रिपु-मृग-केसरी; भव-तरु-मत्त-गजेंद रे, टालइ सब दुःख-दंद रे. १४ जिणिंद रे मुणिंद रे, तुम्ह नामि परमानंद; जग सघलो तुझनइ जपइ, थंभण पास जिणिंद रे. १५ जि... खास-सास-भगंदरा, जर-कोढादि वृंद; द्रव्य-भाव रा(रो)ग टालवा प्रभु!, तु छइ त्रिभुवन-वेद रे. १६ सागर-नदी-तटाकना, जल करइ गगनि वाद; तिहां पडीया तुझनइ जपइ, ते पामइ प्रवहण-वृंद रे. १७ दावानल व(त)णा, ज्वाला अतिविकराल; तिहां पडीया तुझ नई जपइ, पामइ जलद विशाल रे. १८ विसहर अतिकोपि चड्यो, धरइ फणी-मणि-आटोप; विसहर-विस-बल भंजवा प्रभु!, तुम्ह नाम जांगली जाप रे. १९ धाडां चोर-रिपु तणा, जेह न मानइ आण; तुम्ह नाम-मंत-जापि करी, तेणि न वालइ प्राण रे. २० केसरी अतिहि कोपीउ, देतो गगनि फाल; पास-नाम-मंत-अष्टापदि, भय थाइ सवि विसराल रे. २१ मदि करी गज मातला, उन्मूलइ तरु-वृंद; गज-उपद्रव टा[लवा] प्रभु!, तुम्ह नाम-मंत मृगेंद रे. २२ भवि करी अतिभीषणां, रिपु बल भड संगाम; प्रभु-नाम-मंत्र-जापि वरइ, जय-कमला अभिराम रे. २३
SR No.520578
Book TitleAnusandhan 2019 01 SrNo 76
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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