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अनुसन्धान-७६
फलविद्धि मसी(गसी) अव(व)ती, वेइ अजाउर पास; सगफणो नारिंग रावण, सहसफणो प्रभु पास. ३७ घृतकल्लोल कल्हरो, करेडो कंबोइ पास; उबारवाडी सामलो, भाभो बलाजो पास. ३८ गाडरीउ स जिण जंगरं (?), [...] जण जगदीस; आधि-व्याधि-भय चूरइ, पूरइ सयल जगीस. ३९ त्रिभुवन मांहि विस्तूंरु, विविध परि [प्रभु] नाम; भय-इति-मारि निवारवा, पूरवा वंछित काम. ४० लाख इगार पूजी करी, सुरपति सारइ सेव; नव दिन सात मास पूजिया, रामि थंभण देव. ४१ कन्हडि साठि सहस पूजीआ, वरसह संख्या जाणि; वासुगिराई पूजिया, अइसी सहसं मंडाणि. ४२ सुर-नर-किन्नर-ज्योतिषी-विद्याधर-मुनि-कोडि; त्रिभुवन-जन सेवा करु, प्रणमइ दोअ कर जोडि. ४३ राज-रमणि नवि मागीइ, मागीइ अविचल वास: प्रभु-पद शिव-पद सुखडी, आपउ लील-विलास. ४४ अजरामर सुख आपी, थापउ सेवक पासि; निज ब(बा)लक चिन्ता करे(री), प्रभु! मुझ पूरउ आस. ४५ जय प्रभु! गाम गामि ठाम ठामि नाम नामि जि[न]वरु, सकल सुख मुझ दान देवा, प्रगट पाम्यो सुरतरु; श्रीहीरविजयसूरिंद राज, थंभण पास जिणेसरु; श्री पंडित महिमुणंद सीस थोण्यो, क्षेमकुसल करु. ४६ ॥ इति श्रीथंभण पासनाथ स्तव संपूर्ण ॥ .
__ (आशापूरण ज्ञानभण्डार - अमदावाद)