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________________ २० अनुसन्धान-७६ करीई मुजै पताका, दुख देखी जे ही थाका; ऊधर्या बहु वराका, अविचल रूप कें. ५ प्रभुता को तुं ही स्वामी, अनंती सकति पामी; अविचल सुमति कामी, रौपैं जय-थूप के. ६ जगत्र कीरति व्यापै, रत्नत्रय तुं ही आपै, त्रीपदी प्रभु सुद्ध थांपै, रवि-प्रतिरूप कें. ७ ॥ ढाल - राग मारू ॥ पार्श्वनाथ थंभणो में, कल्पवृक्ष पायो री; अतुल भाव-भगति आणी, हृदय-कमल ध्यायो री. १ आनंद-अमृत-मेह वूठो, पुन्य-फल दीपायो री; सुकृत-अमृत-वेल संची, पाप-पंक गलायो री. २ लख चोआल भुवन-नाथ, धरणराय ध्यायो री; मात वामादेवीने तेणे, बालपणई हुलरायो री. ३ चोसठि इंद्र धरी आणंद, मेरू-परि ह्नवरायो री; ऋद्धि-वृद्धि-सिद्धि सर्व, विभव अतिक पायो री. ४ जेणिं करी स्तुति विशाल, सुजस तिणे उपायो री; आपणो तिण विश्व माहि, जीत-तूर वजायो री. ५ ॥ कलश ॥ तपगच्छ-मंडण दुरित-खंडण विजयदेव मुणीसरो, तस पट्ट-दीपक शत्रु-जीपक विजयसिंह दिवायरो; तस सीस वाचक उदयविजयें संथुण्यो परमेसरू, श्री पास थंभण भुवण-रंजण जय जयो नित जयकरो. ॥ इति श्री थंभणपासस्तवनं ॥ (ला.द. विद्यामन्दिर - १२८११)
SR No.520578
Book TitleAnusandhan 2019 01 SrNo 76
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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