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जान्युआरी- २०१९
भावना कवितणी तुज्झ गोचर इसी, तेहि ज तेसु प्रभो! सफल करवी; अहवा सुप्रसादादि अवधार, चंद परि ऊजळी कीर्ति धरवी. ५ कोडि दीपालिका जीव जस ऊजलो, मेरुगिरि सरिस ते रयणराशी; द्रव्य पाथोधि जल जेम अविचल सदा, उदय नितु होइं सुमति-प्रकाशी. ६
॥ ढाल - मेरो नाह निठुर अभिमानी हो ए देशी ॥ इम वीनती दिलमांहि आंणो हो, प्रभो! मोरी वीनती दिलमां आणो हो; भगति-भाव-भावितनी पंति, प्रभ! मुझनें पिण जाणो हो. १ इम... तुझ सेवक ते सहुनो नायक, विश्ववदीतो राणो हो; गेही अथवा साधु-शिरोमणि, सहू कहें अमूलिक दाणो हो. २ उत्तम संगतिथी होइ उत्तम, अह न्याय सपरांणो हो; तुझ सम उत्तम कहो कुण कहीइं, सेवक तेम पिछानो हो. ३ तुम्हथी धृति-मति-कीरति पावें, सोवन-मणि सुप्रमाणो हो; मेरु जिस्या अंबार सोवनना, तेज झलामल भाणो हो. ४ तुझ सेवक संगतिथी पावन, कविजन सुजस थपाणो हो; सहजें गंगा-जल-निर्मलता, ओ प्रसिद्ध ऊखाणो हो. ५ वांचा नाणे कुण अति रीझें, सोवनसार वखाणो हो । हरि-हर-प्रमुखें मन नवि मानें, साचो तुं कहिवाणो हो. ६
॥ ढाल - आज तो निसान वाजें दशरथ राउ के ए देशी ॥ पैंसी तो विराजै तेरी प्रभुता अनूप के कोडाकोडी वाजा वाजें, छत्रत्रय शिर छाजें;
अति दिवाजें राजें, अनूपम रूप के. १ सुर-नर पार नाहि, तेजें दश दिशि गाहि;
सीह समो तुं ही उच्छाहिं, अतुल सरूप कें. २ अरी सवें तिं निवार्या, सूधा पंथ तिं सुधार्या;
__ पापभयथि उगार्या, तार्या वड भूप में. ३ मोहराय आघो लेई, ताहिं विश्वास देई;
जीती उगार्या तार्या(तेई), तैं ही भव-कूप के. ४